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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ हवे ए लेश्यावंतादिक जीव चौद मार्गणाधारे विचारतां कया जीव कया जीवनी अपेक्षायें थोमा तथा घणा अथवा तुल्य होय ? एवो शिष्यनो संशय टालवा नि. मित्त नवमुं अल्प बहुत्व हार कहेजे. ते कहेतां थकां अव्यप्रमाणादिकछार पण सुगम थाय, ते जणी एकेक मार्गणायें अल्प बहुत्व कहे . . त्यां प्रथम गतिमार्गणायें सर्व जीवथी नर के मनुष्य गतिना जीव थोवा के थोमा जाणवा. त्यां गर्ज़ज मनुष्यनी संख्याना जंगणत्रीश श्रांक लखीयें बेंयें. ७, ए, २७, १, ६५, ५१, ४२, ६, ४३, ३७, ५ए, ३, ५४, ३ए, ५७, ३३६, एटला थांकनी संख्यायें गर्ज़ज मनुष्य जाणवा, अने उत्कृष्टपदें तेथी असंख्याता संमूर्बिम होय. केम के मनुष्य बे प्रकारना बे. एक गÓज अने बीजा संमूर्छिम, तेमां संमूर्बिम ते गर्तज मनुष्यना मल मूत्र शुक्र, शोणीत, मांस, परू, कलेवर प्रमुख अपवित्र चौद स्थानकादिकथी उपजे तेने कहीयें, ते संमूर्डिम यद्यपि असंख्याता डे तथापि ते अध्रुव बे, जे नणी तेनुं श्रायु अंतरमुहर्त्तनुं होय तथा देखाय नहीं, अने तेने उपजवानो वीरहकाल जघन्यथी एक समय तथा उत्कृष्टश्री चोवीश मुहूर्त , तेथी ते केवारें होय अने केवारे निर्लेप पण थाय. एटले न पण होय, अने गर्भजनो विरह तो नज होय, ते गर्भज तो सदैव होयज, ते वली ते संख्याताज होय पण असंख्याता न होय, त्यां संख्याताना संख्याता नेद ले. माटे ते मनुष्य केटला . तेनुं प्ररूपण करे . ___ कोइएकराशि, तेहिजराशि साथें गणीये तेने वर्ग कहीये. त्या एकनो वर्ग न होय श्रने बेनो वर्ग चार थाय, ए प्रथम वर्ग. अने चारनो वर्ग सोल, ए बीजो वर्ग, शोलनो वर्ग बसें ने उपन्न, ए त्रीजो वर्ग. एनो वर्ग पांशठ हजार, पांचसे ने उनीश थाय. ए चोथो वर्ग. ४२एवएशए६ ए पांचमो वर्ग. १४४६७०४०७३७०ए५५१६१६ ए हो वर्ग. ते पांचमा वर्ग साथै गुणीयें, तेवारें पूर्वोक्त श्रांक थाय. ते श्रांकनी संख्या सात कोडाकोनी कोमाकोमी, बाणुं लाख कोडाकोमी कोमी, अहावीश हजार कोडाकोडी कोडी, एकशो कोडाकोडी कोमी, बाशठ कोमाकोडी कोमी, एकावन लाख कोडाकोडी, बेंतालीश हजार कोडा कोडी, बसें कोमाकोमी, तेंतालीश कोडाकोमी, साडतीश लाख कोडी, उंगणशाठ हजार कोडी, त्रणशे कोमी, चोपन कोडी थने उपर उंगणचालीश लाख, पञ्चाश हजार, त्रणसें ने बत्रीश थया. अथवा एकने बन्नुवार गणां बमणां करीयें तो पण एटलीज राशि थाय. ए पन्नवणामां कडं डे, एटला जघन्यपदें गर्भज मनुष्य होय श्रने जेवारें संमूर्छिम होय ते साथें गणीयें, तेवारें उत्कृष्टपदें असंख्याता होय. असंख्याती उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीना जेटला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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