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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ४ आहारा के० चौद पूर्वधरमुनि पोताना मनना संशय टालवाने तथा जिनरुद्धि देवाने तुं स्फटिक सरखुं मुंढ हाथ प्रमाण शरीर करे, ते आहारक शरीर. तेनी साथै श्रात्मानं जोम, श्राहारकशरीरजन्य व्यापार, ते आहारकयोग. उरलं के० श्रदारिक शरीरने योगें जे जीवव्यापार ते चौदारिकयोग जाणवो. हवे त्र योगने मीसा के० मिश्र करवा एटले अपर्याप्तावस्थायें मनुष्य तिर्यंचने कार्मण साथै मिश्र जे औदारिकपुजलजन्यव्यापार ते प्रथम दारिक मिश्रयोग जावो. ए तथा देवता ने नारकीने अपर्याप्तावस्थायें कार्मणसायें मिश्र जे वैक्रियपुङ्गल अथवा मनुष्यादिकने उत्तरखैक्रिय करतां ज्यांसुधी तेनी पर्याप्ति पूर्ण श्र‍ नथी, त्यांसुधी श्रदारिक पुजलसायें वैक्रियपुङ्गल मिश्र होय तेथी थयो जे जीववीर्य विशेष ते बीजो वैक्रियमिश्रयोग जाणवो. तथा आहारक शरीर करतां ज्यांसुधी तेनी पर्याप्ति पूरी करी नथी त्यांसुधी आहारक पुल औदारिकसाथै मिश्र होय तजन्य जीववीर्य विशेष ते त्रीजो श्राहारक मिश्रयोग जाणवो. तेम आहारकशरीरने संहरता पण आहारक मिश्रयोग होय. कम्मण के कर्मदलायें आत्मप्रदेशनुं मलवुं, ते कार्मणशरीर कहीयें. तेणे करी परजवादिकथी आगमनशक्ति ते चोथो कार्मणयोग. ए चार योग मिश्रना तथा त्रण पूर्वेका जे त्रण शरीरना, एवं सर्व मली सात कायाना योग थया, तथा चार मनना ने चार वचनना, एवं पंदर योग कह्या. कोशे जे तैजस पण शरीर बे, तेणे करी पण जीवने तेजोलेश्या मूकवा सेवा दिनुं कर तथा जोजन पाचनादिक व्यापारें प्रवर्त्ततो बतो तैजसपणे योग केम न कह्यो ? तिहां उत्तर कहेबे के, जीवने तैजसशरीर, अने कार्मणशरीर सर्वदा होय. तेथी कार्म्मणयोगमांहेज ए लीधुं, ए नाव बे. इ जोगा के० एम नामी तथा स्वरूपथी ए पंदर योग कह्या. ॥ हवे बाश मार्गणा द्वारें ए पंदर योग विवरे बे. ॥ कम्म हारे के० णाहारी मार्गणायें एकज कार्मणयोग होय. बीजा चौद योगें वर्त्ततो जीव, आहारी होय छाने कार्मणयोगें वर्त्ततो जीव घणाहारी होय, तेम आहारी पण होय, जे जणी प्रथम समयें कार्मणयोगें खाहारी होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ २७ ॥ नर गइ पििद तस तपु, प्रचकु नर नपु कसाय सम्मगे ॥ सन्नि लेसा दारग, जव मइ सुख उदि पुगि सवे ॥ २८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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