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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ पए देसे के देशविरति, सुहुमे के सूक्ष्मसंपराय, एवं पांच मार्गणा स्सहाण के० पोतपोताने गुणस्थानकें होय. अने तेरस के तेर गुणगणां, जोग के योगनी त्रण मा. र्गणा तथा आहार के० आहारमार्गणा अने सुक्काए के शुक्ललेश्यामार्गणा, एवं पांच मार्गणायें होय. अविर तिथी मांडीने श्रगीधारमा गुणगणां लगे श्राप गुणगणा सुधीमां औपशमिक सम्यक्त्व मार्गणा होय. तेमांहे अविरति, देशविरति, प्रमत्त अने अप्रमत्त, ए चार गुणगणां ग्रंथिन्नेद करतां देश विरति तथा सर्व विरति लहे, ते अपेक्षायें सेवा. तथा श्रागलां चार गुणगणां उपशमश्रेणीयें होय. एवं तेंतालीश. अविरति, देशविरति, प्रमत्त, अने अप्रमत्त, ए चार गुणगणां वेदक के दायोपशमिक सम्यक्त्वे होय, अने श्रागले गुणगणे श्रेणी करतां औपशमिक तथा कायिक सम्यक्त्व होय, पण तिहां सम्यकत्व मोहनीय वेदवाने अजावें वेदक सम्यक्त्व न होय. एवं चुम्मालीश मार्गणायें गुणगणां कह्यां. दायिक सम्यक्त्वमार्गणायें अविरतिगुणगणाधी मांडीने अयोगी लगें अगीयार गुणगण होय, अहीं प्रथमनां त्रण गुणगणों न होय, जे जणी चोथे, पांचमे, बहे अने सातमे, ए चार गुणगाणे तो जेणे मोदनीयनी सात प्रकृत्ति खपावी ने पूर्वे परनवश्रायु बांध्यु होय ते रहे. तथा जो अबझायु दपक श्रेणी करे तो तेनी अपेक्षायें अगीपार गुणगणां होय. अहींयां को पूजे जे सम्यक्त्व मोहनीयना क्षयथी थयुंजे तत्वज्ञान, तेने सम्यक्त्व केम कहीयें ? तत्रोत्तरं. जे मिथ्यात्वना पुजल, मादक शक्तिरहित शोध्या तंबूलनी पेरें कख्या तेने सम्ययक्त्व मोहनीय कहीयें तेनी पेरें दायथी प्रगट्यो जे आत्मानो शुक श्रमानगुण, जेम आबां पडल उतारे अांखनां पडल मटे, तेज प्रगट थाय, तेनी परें जे शुभत्मिगुण प्रगटे तेने सम्यक्त्व कहीये. ते पाम्या पलीत्रण जव करे, जो पूर्वे देवायु तथा नरकायु बांध्युं होय तो त्रण नव करे, थने मनुष्यायु तथा तिर्यंचायु बांध्या पली ए सम्यक्त्व लहे, तो जेणे असंख्याता वर्षायु युगलीयानुं बांध्युं होय तेज जीव, सम्यक्त्व आहे. पण जेणे संख्यात वर्षायुनो बंध कस्यो होय तो ते जीव पली दायिक सम्यक्त्व न लहे, तो ते अपेदायें चार नव करे. यतः " तंमियतश्शचनलं, नवंमि सितंति खश्वसम्मत्ते ॥ सुर निरय जुगलि सुगई; शमं तुजिणकालिशनराणं ॥१॥" एवं पीस्तालीश मिथ्यात्वमार्गणायें पहेलु मिथ्यात्व गुणगएं होय, सास्वादनमार्गणायें सास्वादन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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