SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 504
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधस्वामित्वनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ४ ए माटे ए चोथु स्थानक तथा ज्ञानावरणीय अने अंतराय, ए त्रण कर्म श्रावलिका मात्र थाकतां होय, तेवारें बारमे गुणगणे एनी उदीरणा नहीं जाणवी. तेथी त्यां पड़ी नाम श्रने गोत्र, ए बे कर्मनीज उदीरणा होय, एम सयोगीये पण बेनी उदीरणा अने अयोगी अनुदीरक होय, ए पांचमुं स्थानक. एम ए सर्व मनुष्यने विषे संनवे बे. ते जणी सन्नियो पंचेंजिय पर्याप्ताने विषे ए पांच उदीरणास्थानक कह्यां. एटले मूल जीव नेद छारें गुणगणादिक आठ बोल कह्या, ए जे जीवना नेद कह्या ते जीवना जेद गत्यादिक ने करी विचारतां चतुर्विध पंचविधादिक थाय, तेथी चौद नेदर्नु अनियतपणुं देखाड्यु.॥ ११ ॥ उक्तानि जीवस्थानेषु गुणस्थानादीन्यष्टौ हाराणि. ॥श्रथ मार्गणास्थानान्याह ॥ गइ इंदि एअ काए, जोए वेए कसाय नाणेसु ॥ संजम दंसण लेसा, नव सम्मे सन्नि आहारे॥१२॥ श्रर्थ-ग के० गति चार, इंदिएथ के पांच एकेंपियादिक इंजिय, एवं नव.काए के पृथ्वीकायादिक ब जीव निकाय, जीवसमूह ते निकाय कहीयें, एवं पंदर, जोए के बोल, चालवू, इत्यादिक चेष्टायें जोवे ते योग त्रण, एवं श्रढार. वेए के इंजिये करी सुख वेदीयें, ते नणी वेद त्रण, एवं एकवीश. कसाय के कष एटले संसार तेनो श्राय एटले लाल होय ते जणी कषाय कहीये, तेनी चार मार्गणा, एवं पच्चीश. नाणेसु के जाणी वस्तुपर्यायशुं णे, ते जणी ज्ञान कहीये. तेनी मार्गणा श्राठ. एवं तेत्रीश थ३. संजम के० सावद्ययोगथकी निवर्त्तवं तेने संयम कहीये. तेनी मार्गणा सात, एवं चालीश. दंसण के दर्शन सामान्यावबोध तेना नेद चार, एवं चुम्मालीश. लेसा के कषायोदयें अशुमाध्यवसाय थाय तथा योगप्रवृत्ति ते वेश्या तेनी न मार्गणा, एवं पञ्चाश. नव के० नव्यानव्यमार्गणा, एवं बावन्न. सम्मे के सम्यक्त्व मिथ्यात्वादि नेदें तत्त्वज्ञानवंत जीव नेद ब, एवं अहावनः सन्नि के० मनसहित ते संझीया बाकी असन्निा ,एम बेनेदें जीव,एवं शाप. आहारे के उजाहारादिक करे ते आहारी अने आहार न करे, ते अणाहारी, एम बे नेदें जीव. एवं बाश नेद उत्तर जाणवा. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥१२॥ हवे चौद मूल मार्गणाधारनां उत्तर बाशठ मार्गणाधार कहेले. सुर नर तिरि निरय गइ, ग बिअ तिअ चन पणिंदि बकाया ॥ नू जल जलणा ऽनिल वण, तसाय मण वयण तणु जोगा. ॥१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy