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बंधस्वामित्वनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ श्राप कर्मनी लाने, अने सात कर्मनी सत्ता तो बारमे गुणगणे लाने. ते तेने न होय, एम तेर जीव स्थानकें बंध, उदय, उदीरणा श्रने सत्तानां स्थानक कह्यां. ॥ १० ॥
॥ हवे सन्निश्रा पंचेंजिय पर्याप्ताने विषे बंधादि स्थानक कहेजे. ॥
सत्तह बेग बंधा, संतु दया सत्त अच्चत्तारि ॥
सत्त: पंचगं, उदीरणा सन्निपजत्ते ॥११॥ अर्थ-सत्तह के सातनो तथा श्रानो बेग के बनो तथा एकनो बंधा के ए चार बंधस्थानक संझी पंचेंजियने होय, अने सत्तश्रध्चत्तारि के सातनुं, श्राग्नु अने चारनुं, ए त्रण संतुदया के सत्तास्थानक तथा उदयस्थानक होय. अने सत्तहमपंचगं के सात, आठ, ब, पांच अने बे, ए पांच उदीरणा के उदीरणास्थानक सन्निपात्ते के संझीपंचेंजिय पर्याप्ताने विषे होय. ॥ इत्यदरार्थः ॥११॥ _ सन्नीथा पंचेंजिय पर्याप्ताने विषे ज्यां सुधी श्रायु न बांधे त्यां सुधी सात कमनो बंध होय अने परजवतुं श्रायु बांधे, तिहां थाठ कर्मनो बंध होय, थने दशमे गुणगणे चढ्यो मोहनीय तथा श्रायु ए बे न बांधे, त्यां कर्मनो बंध होय, थने अगीधारमा गुणगणा उपरांत एक वेदनीयनो बंध होय,एवं चार बंध स्थानक होय.
तथा तेने सत्तास्थानक त्रण होय, तिहां आठ कर्मनी सत्ता अगीधारमा गुण. गणा सुधी होय, त्यां वली मोहनीय क्ष्य कस्या पली बारमे गुणगणे सात कर्मनी सत्ता होय. तिहां वली ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय, ए त्रण कर्मक्षय कस्या पली तेरमे अने चौदमे गुणगणे चार कर्मनी सत्ता होय, ए त्रण सत्तास्थानक.
एज रीतें दशमा गुणगणा सुधी था कर्मनो उदय होय, अने अगीारमे तथा बारमे, ए बे गुणगणे मोहनीय विना सात कर्मनो उदय होय, अने सयोगी तथा अयोगी ए बे गुणगणे चार अघातीया कर्मनो उदय होय. ए मनुष्यने संजवे तेथी मनुष्यनी अपेदायें संज्ञीश्रा पंचेंजियने त्रण उदय स्थानक कह्यां.
हवे उदीरणास्थानक कहे . आवलिका शेष निजलवायु रहे, त्यांसुधी पाठ कर्मनी उदीरणा होय, ए प्रथम स्थानक, श्रने आयुनी बेहेली उदयावलिकायें उदीरणा टली जाय, तेवारें सात कर्मनी उदीरणा जाणवी. ए बीजं स्थानक श्रने बहा गुणगणाथी श्रागडे वेदनी अने श्रायु, ए बे कर्मनी उदीरणा न होय माटे तिहां कर्मनी उदीरणा होय. ए त्रीजु स्थानक; तथा दशमे गुणगणे वेदनीय, श्रायु अने मोहनीय, ए त्रण कर्मना पांच कर्म विना उदीरणा उपशांत मोह गुणगणा सुधी पामीयें, केमके, श्रावलीमात्र रहे, त्यां मोहनीयनी उदारणा न होय,
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