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कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ.
४२ तथापि सहेजें तिर्यग्गति प्रायोग्य जे ते जणी विशुद्ध अध्यवसायें एनी सत्ता पण टले, थीणकी, निडानिडा अने प्रचला प्रचला, ए थीणजीत्रिक दर्शनावरणीय कर्मनी ने तेनी सत्ता टले. एकेजिय, बेंजिय, तेंजिय, अने चौरिंजियजातिनामकर्म तथा साधारणनामकर्म. एवं शोल प्रकृतिमध्ये श्रीणहीत्रिक दर्शनावरणीयर्नु बे. शेष तेर प्रकृति, नामकर्मनी बे. ए शोल प्रकृतिनो उदय नवमाने प्रथमनागें करे तथा एक श्राचार्यने मतें अनंतानुबंध्यादिक सात प्रकृति खपावी अने बीजा चार तथा त्रीजा चार कषाय खपाववा मांडे, तेनी दपणाविचालें ए शोल प्रकृति खपावे, तेवारें एकसो ने थामत्री शमाहेथी शोल खपावे थके शेष एकसो ने बावीश प्रकृतिनी सत्ता बीजे नागें रहे, तिहां बीजा अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय चार, तथा त्रीजा प्रत्याख्यानांवरणीय कषाय चार, ए श्राप कषायनी प्रकृति खपावे, तेवारें एकसो ने बावीश प्रकृतिमाहेथी आठ कषाय दय गये थके शेष एकसो ने चौद प्रकृतिनी सत्ता, नवमाना बीजे नागें रहे॥ए॥
तआश्सु चनदस ते, र बार ब पण चन तिदिअ सय कम
सो॥ नपु शनि दासग पुस, तुरिअ कोदो मय माय ख ॥३०॥ अर्थ- तश्श्राश्सु के० तृतीयादिकनागने विषे एटले नवमाना त्रीजा नागने विषे चन्दस के० एकसो ने चौद प्रकृतिनी सत्ता होय,चोथे नागें तेर के० एकसो तेर,पांचमे नागें बार के एकसो बार,बहे नागें ब के एकशोब, सातमे नागेपण के० एकसो पांच, थामे नागें चज के एकसो चार, नवमे नागें ति हिअसय के० एकसो नेत्रण,ए कमसो के अनुकमें सत्ताप्रकृति जाणवी. त्यां नपु के नपुंसकवेद, इलि के स्त्रीवेद, हासबग के हास्यादिक उ, पुस के० पुरुषवेद, तुरिअकोहो के चोथो संज्वलनोक्रोध, मय के मद एटले संज्वलनमान,माय के संज्वलन माया, तेनो खर्ड के दय,अनुक्रमें थाय ३०
झानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय ब, वेदनीय बे, मोहनीय तेर, आयुनी एक, नामनी एंशी, गोत्रनी बे अने अंतरायनी पांच, एवं एकसो ने चौद प्रकृतिनी सत्ता रही, ते अनुक्रमें तश्याश्सु के त्रीजो नाग श्रादें देश् अनिवृत्तिकरणना नवमा नाग लगें अनुक्रमें एकसो तेर, एकसो बार, यावत् नवमे नागे एकसो ने त्रण प्रकृतिनी संख्या जोमवी, ते श्रावी रीतें के त्रीजे नागें एकसो ने चौद प्रकृतिनी सत्ता रही, तेमांहेथी नपुंसकवेद दय करे. तेवारें चोथे नागें एकसो ने तेरनी सत्ता रहे, त्या स्त्रीवेद दय करे, तेवारें पांचमे नागे एकसो ने बार प्रकृतिनी सत्ता रहे, त्यां हास्यादिक उ प्रकृति क्षय करे, तेवारें के नागें एकसो ब प्रकृतिनी सत्ता रहे, त्यां पुरुषवेदनो क्षय करे, तेवारें सातमे नागें एकसो पांच प्रकृतिनी सत्ता रहे, त्यां संज्वलन क्रोधनो क्षय करें, तेवारें आपमे नागें एकसो चारनी सत्ता रहे, त्यां संज्वलन माननो दय करे, तेवारें
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