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________________ ३नत कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. ॥ॐ नमोऽर्दते ॥ ॥ श्रथ ॥ ॥श्री बालावबोधसहित कर्मस्तवनामा द्वितीयकर्मग्रंथः प्रारच्यते ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ श्रादौ बालावबोधकृत मंगलाचरणम् ॥ ॥अनुष्टुप वृत्तम् ॥ त्रिजगत्सृष्टिसंतान, स्थितिनाशव्यवस्थिति ॥ दिशत्यै सममाईत्यै त्रिपथै हृद्यहठिये ॥१॥ कर्म बंधोदयावस्था, त्रिपुर धृक् दृशा ध्रुवम् ॥ तस्यै यस्याप्रशस्याझा, वरिवस्य शिवोजवेत् ॥२॥ ध्यान धाम्नि निधायोच्चैः, स्वगुरु गुरुगौरवान ॥ श्रीमत्कर्मस्तवे कुर्वे, टबार्थ लिखनक्रमम् ॥३॥ ॥ मूल गाथा ॥ तद थुणिमो वीरजिणं, जद गुणगणेसु सयस कम्माइं॥ बंधुदयोदीरणया, सत्तापत्ताणि खवित्राणि ॥१॥ अर्थ-तह के तेम थुणिमो के स्तवीश. वीरजिणं के० श्रीमहावीरदेवप्रत्ये, जह के जेम गुणगणेसु के० गुणगणाने विषे सयलकम्मा के० सघलायें कर्म प्रकृतिप्रत्ये बंधुदयोदीरणया के बंध, उदय, उदीरणायें करी सत्तापत्ताणि के सत्तायें पामीने खविश्राणि के पितानि एटले खपाव्यां, निर्जस्यां ॥ इत्यक्षरार्थः ॥१॥ __अथ वार्तिकं लिख्यते ॥ जेम कर्म खपाववारूप थपायापगम गुण वर्णवशे, कर्मशत्र विदारवे करी वीर कहीये. जेम मिथ्यादृष्ट्यादिक गुणगणा, शिवमंदिर चढवाने पावमीश्रा एटले पगथियां सरखा जीवनी शुध, शुद्धतर, शुद्धतम अध्यवसाय वि. शेष. यद्यपि ते अध्यवसाय असंख्याता , तो पण स्थूलव्यवहारें चौद कहीये. तेने विषे झानावरणीयादिक आठ मूलप्रकृति, मतिज्ञानावरणीयादिक उत्तरप्रकृतिबंध. योग्य एकसो ने वीश उदय उदीरणायें योग्य, एकसो ने बावीश, सत्तायें एकसो ने अडतालीश, ते जिहां जेटली लही, तथा जिहां जेटलीनो विछेद करी जे कर्मवर्गणा दलसाथें मिथ्यात्वादिक श्रावें करी जीवप्रदेशने दूध पाणीनी पेरें तथा लोह अग्नि मले, तेवी रीतें एकमेक था, ते बंध कहीयें. ५ ते बांध्यां कर्मनुं सहेजें अबाधा काल वीते थके अपवर्तनादिक करण विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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