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कर्मविपाकनामा प्रथम कर्मग्रंथ. १ __॥ हवे निर्माण नामकर्मनुं स्वरूप कहीयें बैयें. ॥ अंगोवंग नियमिणं, निम्माणं कुणइ सुत्तहारसमं ॥
उवघाया उव हम्मइ, सतणु अवयवलंबि गाहिं ॥४७॥ अर्थ-अंगोवंग के अंगोपांग नियमिणं के गमर्नु गम थाणवू, ते निम्माणंकुण के निर्माणनामकर्म करे, सुत्तहारसमं के ते सूत्रधार सरखं जाणवू. उवघाया के० उपघातनामकर्मथी उवहम्मर के हणाय, पीडाय, सतणु के० पोताना शरीरना,श्रवयव के अवयवें करी लंबिगाहिं के पडजीनी चोरदंतादिकें करी ॥श्त्यदरार्थः॥४॥ __ औदारिकादिक त्रण शरीरनां अंगोपांग हाथ, पग, पेट, पुंठ, मस्तकादिक जे ज्यां जोश्ये, ते त्यां थापे, पण फेरफार न होय. हाथने गमें पग न होय,अने पगने ठामे हाथ न होय, परंतु पगने स्थानकें पग अने हाथने स्थानके हाथ होय, एम पंचेंजियपणुं जे ज्यां ते त्यां होय, एम अंगोपांगनो नियम निर्धार, जे कर्मना उदयथी जीव करे, ते निर्माणनामकर्म. ए कम करी अंगोपांगनामें करी नीपजाव्यां जे अंगोपांग तेनां गम, व्यवस्था होय. अहीं दृष्टांत देखाडे जे. जेम सूत्रधार,काष्टपाषाणनी पुतलीनो करनार पूतलीने घडतो जूदां जूदां हाथ पगना श्राकारना काष्ठखंग ते ज्यां जेवा जोश्ये त्यां तेवा मेलीने पूतली करे, ते निर्माणनामकर्म.
हवे उपघात नामकर्मनुं स्वरूप कहे . उपघात नामकर्मथी जीव हणाय, पीमाय, स्खलना पामे. शेणे करी स्खलना पामे? ते कहे . सतणुअवयव के पोतानां अंग, पडजीजी, चोरदंत, तथा अधिक अंगुलि होय. तथा रसोली प्रमुख अधिक अंगें करी तथा ने अंगें करी जीव दुःख पामे,ते उपघातनामकर्मनो उदय जाणवो.
॥ हवे त्रसादिक दश प्रकृतिनुं स्वरूप कहेले ॥ विति चन पणिंदि तस्सा, बायर बायराजिआ थूला ॥
निअ निअ पजाति जुआ, पजाता ल६ि करणेहिं॥४ए॥ अर्थ-वि के बे इंजिय, ति के तेंजिय, चट के० चौरिंजिय, पणिंदि के पंचेंजिय जीव, ते तस्सा के प्रथम त्रस नामकर्म. बीजुं बायर के बादरनामकर्मना उदयथी बायरा जियाथूला के जीव बादर, स्थूल कहेवाय, सूक्ष्म फीटी बादर थाय. त्रीजु नियनिअपऊतिजुश्रा के पोतपोतानी जेटली पर्याप्ति होय तेटली पर्याप्ति सहित जीव होय,ते पऊत्तालकिकरणे हिं के० अपर्याप्ता लब्धियें करी तथा करणे करी ए बे नेदें करी पर्याप्ता तेमज अपर्याप्ता पण बे नेदें जाणवा ॥ इत्यक्षरार्थः ॥ ४ ॥
१जे त्रास पामे तापादिकें करी फुःखथकी बीक पामतो बायायें आवे तथा था
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