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________________ ३६० कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ अर्थ- जं के जे कर्म संघाय के एकगं करवां, उरलाइ के औदारिकादिक पांच शरीरना जे पुग्गले के पुजल, ते प्रत्ये तणगणंवदंताली के जेम तृणखलाना समूह प्रत्यें दंताली एकगे करे, तेनी पेरें करवा तं के ते संघायं के संघातननामकर्म कहीये. बंधणमिव के बंधननी पेरें तेना पण तणुनामे के पांच शरीरने नामे पंचविहं के पांच नेद बे. इत्यदरार्थः ॥ ३५॥ - जे कर्मना उदयथी औदारिकादिक योग्य पुजलने संघातयति कहेतां एकठा करे, ते संघातन. हवे जीव, प्रथम संघातननामने उदयें करी औदारिकादिक पुजसनो राशि करे, ते बंधननामें करी बांधे अने अंगोपांगनामथी हाथ, पगना श्राकार घडे. श्रहीं दृष्टांत देखामे जे. जेम दंताली कहेतां मारवाडमां प्रसिद्ध काष्ठ उपकरण विशेष तेणे करी जेम विखरेलां तृणखलाने बहारीने एकगं करीयें पड़ी तेनो सुखें जारो बंधाय, तेम संघातननामकर्मे करी एकठां कस्यां एवां जे दल तेनो बंधननामे बंध होय, ते संघातननामकर्म; ते पण जेम पांच शरीरनां पांच बंधन कह्यां, तेम ए संघातन पण पांच न्नेदें बे, ते सूत्रथी कहीयें बैयें. जे कर्मने उदयें जीव, औदारिकपुजल मेलवे, ते पहेलु औदारिक संघातन. जे कर्मने उदयें जीव, वैक्रिय पुजल मेलवे, ते बीजं वैकियसंघातन. जे कर्मने उदयें जीव, थाहारकना पुजल मेलवे, ते त्रीजुं श्राहारकसंघातन. जे कर्मने उदयें जीव, तैजस शरीरना पुजल मेलवे, ते चो) तैजससंघातन. जे कर्मने उदयें जीव, कार्मणना पुजल मेलवे, ते पांचमुं कार्मणसंघातन.एम पांच संघातननाम कह्यां. ते पली संघयण कहेशे. ॥ ३६ ॥ ॥ तथा प्रकारांतरें सत्तायें पन्नर बंधन श्राणवाने गाथा कहे जे. ॥ __ उराल विनवा दा, र याणं सग तेज कम्मजुत्ताणं ॥ .. .. नव बंधणाणि इअर, उसदिआणि तिन्नि तेसिं च ॥३७॥ अर्थ- राल के औदारिक, विजव्व के वैक्रिय तथा थाहारयाणं के आहारक, ए त्रणने सग के पोतपोतानी साथें जोमतां त्रण बंधन थाय, अने ए त्रण शरीरने, तेश्र के तैजससाथें बने कम्म के कार्मण साथें, जुत्ताणं के युक्त करतां पण त्रण त्रण थाय. नवबंधणाणि के० एम त्रण शरीरना नव बंधन थाय. तथा श्यर के स्तर जे तैजस अने कार्मण, ए 3 के बेनी साथै सहिथाणि के सहित करतां तिन्नितेसिंच के त्रण त्रण बंधन तैजस कार्मणनां. ए पंदर बंधन थाय ॥ इत्यदरार्थः ॥ ३७॥ औदारिक, वैक्रिय अने थाहारक, ए त्रणने पोतपोतानी साथें जोमतां त्रण बंधन थाय. तथा ए त्रण साथें तैजस शरीर जोडतां पण त्रण बंधन थाय तथा ए त्रण साथें कार्मण शरीर जोमतां त्रण बंधन थाय. एवं नव बंधन देखामीयें बैयें. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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