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इंडियपराजयशतक. जले बूड्यो थको दळं के देखे तो पण ते थलं के स्थलथी तीर के तीरे नानिसमे के न जश् शके; एवं के ए प्रमाणे जिया के जीवो कामगुणेसु के कामसमूहनेविषे गिजा के श्रासक्त थका सुधम्ममम्गे के सुधर्मना मार्गने विषे नरयाहवंति के न रत्ता एटले सावधान न थक्ष शेक. ॥५॥
जदविपुंजखुत्तो किमी सुदं मन्नए सयाकालं ॥ तद विसयासुश्रत्तो जीवो विमुण सुहं मूढो॥६०॥ मयरहरोव जलेहिं तद विहु उप्पूर कश्मे आया ॥ विसया मिसंमि गिछो नवे नवे वच्चश्न तत्तिं ॥६१ ॥ व्याख्या-जह के जेम विघ्पुंजखित्तो के विष्टाना ढगलामांहे खूतेलो किमी के० करमी, सयाकादं के सदाकाल सुहंमन्नए के सुख माने जे; तह के तेम विसयासुश्रत्तो के विषयरूप अशुचिनेविषे रक्त थएलो एवो मूढो के मूढ जीवो के जीव ते विषयनेविषेज सुहं विमुणश के विशेषे करीने सुख माने जे. ॥ ६० ॥ मयरहर एटले मगरदर ते मगरने हरण करनार एवो जे समुज ते जेम जलेहिं के पाणीएकरी उप्पूर के० पूरवो दोहिलो बे. एटले दुःखे पूराय, अर्थात् समुजमांगमे तेटडं पाणी नाखो तोपण ते तेथी तृप्ति पामे नही तेम, ए थाया के आत्मा, विसयामिसंमिगिको के विषयरूप आमिष एटले मांसने विषे सक्त थयो थको जवे जवे के नवजवने विषे तत्तिं के तृप्ति प्रत्ये न वच्चर के न पामे. ॥ ६१ ॥ विसयविसहाजीवा जनडरूवाइएसु विविदेसु॥नवसय सदस्सउलक्ष्नमुणंतिगयंपि निअजम्मं ॥६॥ चिति विसयविवसा मुत्तंलग्नंपिकेवि गयसंका ॥ न गणंति केवि मरणं विसयंकुस सल्लिया जीवा ॥६३ ॥ व्याख्या-विषयविसट्टाजीवा के विषयरूप जे विष तेणे करी आर्त एटले पीमायमान् थएला एवा जीव, उपडरूवाइए के उदनटरूप धादिदेश विविडेसु के विविध प्रकारनों रूप ते नवसयसहस्स के नवना शतसहस्ते करीने एटले लाखो गमे जवे करीने पण मुलहं के पुर्खन एवो निधजम्मं के मनुष्य जन्म ते गयंपि के० गयो थको पण न मुणंति के न जाणे. ॥ ६३ ॥ विसयंकुससलियो जीवा के वि. षयरूप अंकुशे साक्ष्या एवा जीवो, विसयविवसाचिठंति के विषयने वश थया थका तिष्ठंति के रहे . अने लऊपि के० लजाने पण मुत्तं के मूके बे, केटलाएक जीवो गयासंका के गएलीले शंका जेऊनी एवा, अने केवि के केटलाक मरणं न गणंति के मरणने पण नथी गणता ॥ ३ ॥
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