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कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १
३५३ ॥ हवे ग्रंथलाघव करवाने चतुष्कत्रिकादिक संज्ञा जाणवानो
बीजो प्रकार कहे .॥ तसचन थिरबकं अथि, रबक्क सुहमतिग थावरचनकं ॥
सुन्नगतिगाइ विनासा, तयाइ संखादि पयडीदिं ॥ ॥ अर्थ-तसचउ के त्रस चतुष्क, थिरबकं के स्थिरादिक प्रकृति, अथिरबक के० अस्थिरषट्रक, सुहमतिग के सूदमत्रिक, थावरचजकं के स्थावरचतुष्क, सुजगतिगाइ के सौजाग्य त्रिक. इत्यादिक विनासा के० विकल्पविनाषा संज्ञा, तयार के० ते ते प्रकृतिथी श्रादे दे जेटली संखाहि के० संख्या कहीयें, तेटली पयमीहिं के प्रकृति लश्य ॥॥ - त्रस, बादर, पर्याप्त ने प्रत्येक. ए चार प्रकृतिनी संज्ञा त्रसचतुष्क कहीये. स्थिरनाम, शुजनाम, सोनाग्यनाम, सुखरनाम, श्रादेयनाम, यशःकीर्तिनाम, एक प्रकृतिनो समुदाय, तेनी संज्ञा स्थिरषट्रक कहीये. अस्थिरनाम, अशुजनाम, दौर्नाग्यनाम, फुःवरनाम, अनादेयनाम, अयशःकीर्त्तिनाम, ए प्रकृतिना समुदायनी संज्ञा अस्थिरषट्रक कहीयें. सूदमनाम,अपर्याप्तनाम, साधारणनाम, ए त्रण प्रकृतिनो समुदाय, तेनी संज्ञा सूक्ष्म त्रिक कहीये. स्थावरनाम,सूदमनाम, अपर्याप्तनाम, साधारण नाम, ए चार प्रकृतिनी संज्ञा स्थावरचतुष्क कहीयें. सोनाग्यनाम, सुस्वरनाम, ने आदेयनाम, ए त्रण प्रकृतिनीसंझा, सौनाग्य त्रिक कहीयें. इत्यादिक ए शास्त्रमाहे विनासा के विशिष्टप्ररूपण संझा जाणवी. तेथी संकेत पामे थके शास्त्रज्ञान सुगम थाय. जे प्रकृतिथी जेटली संख्यावाची शब्द कह्यो, ते प्रकृतिथी तेटली प्रकृति गुणतां ते ते विनाषा होय, जेम त्रसथी मांमी चार प्रकृति खेतां त्रसचतुष्क कहीयें, एम सर्वत्र समजी लेवु. ए शास्त्रनुं रहस्य जाणवू ॥ २७ ॥
वाचन अगुरुवहु चन, तसा ति चउर बक्क मिच्चाइ॥
श्य अन्नावि विनासा, तया संखादि पयडीदि ॥ श्ए॥ अर्थ-वचन के वर्णचतुष्क, अगुरुलहुचन के अगुरुलघुचतुष्क, तसा के प्रसादिछिक, ति के त्रसत्रिक, चनर के त्रसचतुष्क, बैंक के त्रसषट्रक, मिच्चाइ के० इत्यादिक श्य के एह, अन्नावि के अनेरी पण विनासा के संझा जाणवी. श्रागल सूत्रमादे जे प्रकृतिनुं नाम कदेशे, तयाश्संखाहिपयमीहिं के० त्यांथकी मांडीने तेटली संख्यायें प्रकृतिनी विचाषा जाणवी ॥ इत्यदरार्थः ॥ २५ ॥
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