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________________ कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ २ अने जे मिथ्यात्वदल, अणबड्या मदनकोजवानी पेरें अविशुद्ध दल जे जिहांथी बेठाणी मात्र रस रह्यो, ते बीजुं मिश्रमोहनीयकर्म. ३ तेम जेहवो बांध्यो हतो, तेहवोज जे चोगणी, त्रिगणी, बेगणीश्रा रस सहित अनुपहत सर्व घाति रस तत्वसदहणा विपर्यासनुं करनार, तुष सहित अणखांड्या मदनकोजवानी पेरें उन्मादजन्य कर्मदल, ते त्रीजुं मिथ्यात्वमोहनीयकर्म. १ तथा शोध्यु दल ते जेम चसमा दृष्टितेजने थावरतां पण सूक्ष्म अर्थे दृष्टिपहरावे, तेम जीवने तत्वरुचि ठहरावे, ते सम्यक्त्वमोहनीयकर्म. २ तथा अऊ विशुद्ध एटले अर्डखांड्या अर्डबड्या एवा मदनकोजवानी पेरें विकारजन्य. कांश्क कार्य करे, कांश्क कार्य न करे जेथी तत्वरुचि न होय श्रने श्रतत्वरुचि पण न होय, एवी मिश्ररुचि उपजावे, ते बीजं मिश्रमोहनीयकर्म. ___३ तथा अशुद्धपुंज, मदनकोऽवानी पेरें तथा धतुरानी पेरें दृष्टिने फेरवे, तेणे करी तेहने दृष्टियें अबतो वस्तुधर्म प्रतिनासे. जेम धोला शंखने पीलो जाणीयें, तेम उज्ज्वल जिनमत तेने मलिन देखे अने मलिन एवा जे कुमार्ग, तेने उज्ज्वल देखे, ते त्रीजें मिथ्यात्वमोहनीयकर्म. ए मिथ्यात्वमोहनीयादि त्रण बे. __ अहीं जे सम्यक्त्वमोहनीयादिक प्रकृति ते कारण. तेणे करी तत्व विषयिणी शुद्धमिश्र, अने श्रशुधरुचि जीवनी होय ते कार्य. एम कारण ते अव्य, अने कार्य ते नाव. ए विवदायें एक सम्यक्त्व, बीजुं मिश्र, त्रीजें मिथ्यात्व. ए त्रण मोहनीय, अव्य नावथी जाणवी. कारण ते अव्यकर्म, काय ते नावकर्म, अव्यकर्म केवली जाणे अने अव्यकर्मथी चेष्टादिक थाय ते नावकर्म, ते पणे पण जाणीयें ॥ १४ ॥ ॥ हवे तत्वार्थसदहणा ते सम्यक्त्व कहीयें, ते माटे तत्व कहे जे. ॥ जिअ अजिअ पुल पावा, सव संवर बंध मुक ॥ . निफरणा जेणं सद्दहरु तयं, सम्म खगाई बहुनेअं॥१५॥ अर्थ- जिश्र के जीवतत्वना चौद नेद, अजिअ के अजीव तत्वना चौद नेद, पुल के पुण्यतत्वना बेंतालीश नेद, पाव के पापतत्वना व्याशी नेद, थासव के थाश्रवतत्वना बेतालीश नेद, संवर के संवरतत्वना सत्तावन नेद, बंध के बंधतत्वना चार नेद, मुरक के मोदतत्वना नव नेद, निझारणा के निरातत्वना बार नेद, जेणं के जेहने उपष्टंने सदहश् के सदहे तयं के तेनुं नाम सम्मं के सम्यक्त्व ते खंगाई के दायकादिकें करी बहुन्नेयं के बहु नेदें ॥ इत्यदरार्थः ॥ १५॥ १ त्यां प्रथम जीवतत्व कहे . पांच इंजिय, त्रण बल, एक वासोवास ने श्रायु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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