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कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १
३३७ उदयथी आवे, ते कर्मप्रकृतिनुं नाम पण स्त्यान िस्त्यानकि कहीये. थर्ड चक्री कहेतां चक्रवर्त्तिनुं बल, अने शद्धि तेथकी अर्क बल तथा अर्जी इफि जेनी एटले त्रिखंडनोक्ता वासुदेव, तेना बलथकी अर्ड बल वज्रषजनाराच संघयण वालाने ए निजामांहे आवे तथा बेवहा संघयणवालाने पण ए निजामांहे बमणुं त्रम' जोर वधे. ए नव दर्शनावरणीय कर्मना नेद कह्या. एटले बीजुं कर्म, दर्शनावरण कयु.
हवे त्रीजा वेदनीयकर्मनु स्वरूप, नेद, संख्या, कहे . त्यां मधुलिप्त एवी खगनी धारा तेने विहण कहेतां जीने करी चाट, ते सरखं बे प्रकारे वेदनीयकर्म कडं जे. एटले जेम मधुलिप्त खड्गधारा चाटतां प्रथम मीगशनो रस वेदतो थको जीव, सुख माने पण खडधाराथी जीन बेदाय तेथी फुःख पामे. तेम पंचेंजियना रूप शब्दादिक अनुकूल पामी शाता वेदे ते मधु सरखो अने तेनी अप्राप्तें विरह फुःख वेदे, ते जीन बेदन सरखं जाणवू. एम वेदनीयकर्म त्रीजुं बे नेदे कह्यु.
उसन्नं सुरमणुए, सायमसायं तु तिरिम निरएसु ॥
मांव मोदणीअं, विहं दसण चरणमोदा ॥१३॥ अर्थ-उसन्नं के० प्राये सुरमणुएसाय के देवताने अने मनुष्यने शातावेदनीयनो उदय होय अने मसायंतु के अशातानो उदय होय. ते क्यां होय ? तोके-तिरिअनिरएसु के तिर्यंचगति अने नरकगतिमांहे प्रायें घणो होय. अने मांव के मदिरानी पेरें मोदणीअं के मोहनीय कर्म जीवने विकल करे, ते विहं के वे नेदें बे, एक दंसण के दर्शनमोहनीय अने बीजुं चरणमोहा के चारित्र मोहनीय ॥ इत्यदरार्थः ॥ १३ ॥
उसन्नं ए देशीय शब्द प्रायिकवाची ने तेथी उसन्नं एटले प्रायें सुर के देवता श्रने मणुए के० मनुष्य ए बे गतिमाहे शातानो उदय होय ते जणी ए बेहु गति पुण्यनी प्रकृति ते माटे एमांहे शातानी बहुलता डे अने क्यारेक स्त्रीवियोगादिकें अशाता पण वेदे तेथी प्राये कयुं अने तिर्यंचगति तथा नरकगति ए बेहु पापप्रकृति ने तेथी अशातावेदनीनो त्यां घणो उदय ने अने तिर्यंचमां कोइएक हस्ती रत्नप्रमुख श्रादर महत्व पामे, तथा नारकी पण श्रीजिनकल्याणिक समयें कांश एक छुःखमंदतायें शाता पण वेदे, तेथी प्रायें शब्द कह्यो. ए रीतें त्रीजुं वेदनीयकर्म बे नेदें कडं.
हवे चोथा मोहनीय कर्मनुं स्वरूप तथा नेद कहे . ए कर्मनो मदिरा जेवो स्वजाव . जेम मद्यपान कत्या पली जीव विकल थाय तेम मोहनीयना उदये जीव
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