________________
इंघियपराजयशतक. वली जिणवयणरया के जिनवचनमां रक्त, तेजी के संसारथी बीकण, तेसु के ते विषयोथी विरमंति के विरमे . ॥ ४ ॥
असुश्मुत्तमलपवादरूवयं वंतपित्तवसमऊफोप्फसंमेअमंस बहुदडुकरंडअंचम्ममित्तपबाश्वे जुवइ अंगयं ॥५॥मंसंश्मंमुत्तपुरीसमीसंसिंघाणखेलाइ अनिनरतं ॥ एवं अणिचं किमिाणवासं पासं नराणं मश्वादिराणं ॥ ५ ॥ व्याख्या-असु के अशुचि, मुत्त के मूत्र अने मलपवाहरूवयं के विष्टाप्रवाह तद्रूप अने वंत के वमन पित्त के पित वसा के चरबी श्रने मसा के हाडकां मांहेलो नुको फोप्फ के सोजो संमे के संमेदा, मंस के मांस बहुहम के० घणां हाडकांउनो करंड के करंडी ते चम्ममितं के चर्ममात्रे करी एवं पठाइ के० प्राबादी एटले थाबादीलं एवं, जुवर के स्त्रीनुं अंगयं के अंग बे. ॥ ५० ॥ श्मं के० ए मसं के मांस मुत्त के मूत्र अने पुरीस के० विष्टा तेणे करी मीसं के मिश्रित अने सिंघाण के नासिकानो मल खेलाइव के बडखा एउनुं निरंतं के निकरण एरं के ए, श्रणिच्चं के निरंतर अनित्य जे. वली किमिाण वासं के करमीश्रानुं आवासस्थान, एबुं स्त्रीउँनुं जे शरीर ते मश्बाहिराणं नराणं के मतिबाहिर अर्थात् बाह्यदृष्टि एवा पुरुषोने पास के पाश रूप . ॥५१॥ पासेण पंजरेणय बऊंति चनप्पयाय परकी॥श्यजुवश् पंजरेणं बझा पुरिसा किलिस्संति ॥ ५ ॥ अहो मोहो मदामल्लो जेण अम्मारिसावितु ॥ जाणंताविअणिवत्तं विरमंति न खणंपिहु ॥ ५३॥ _व्याख्या-जेम पासेण के पाशे करी अने पंजरेण के पांजरेकरी चनप्पयाय पकी के चार पगनां पंखीने बशंति के बांधे, तेम श्य के श्रा जुवश्पंजरेण के युवतिरूप पांजरे करी पुरिसाबका के बांधेला एवा पुरुषो ते किलिस्संति के क्लेश पामे . ॥ ५५ ॥ अहो इति आश्चर्ये मोहो महामहो के मोहरूप महामन . जेण के जेणे करी अम्मारिसाविहु के अमारा सरखा पण अणिव्वत्तं के नयी निवर्तता. जाणंतावि के जाणतां उतां पण खणं पिहु के क्षणमात्र पण न विरमंति के नथी ।वरमता. अर्थात् मोहरूपी महामने, अमे जाणीये बैए तो पण क्षणमात्र तजी शकता नथी.॥५३॥
जुवादिंसद कुणंतो संसग्गिं कुणइ सयलकोई ॥ नदि मुसगाणंसंगो दोश सुदो सह बिमालिदिं ॥५४॥ दरिदर चउराणण चंद सूरखं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org