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________________ ३३० कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ तथा घणे पाहुडे पाहुडे एक पाहुम होय. जेम घणे उद्देशे एक अध्ययन होय बे, एवं एक पाहुडनुं ज्ञान, ते पंदरमुं प्राभृतश्रुत जाणवुं. तेवा बे चार प्राभृतनुं ज्ञान, ते शोलमुं प्राभृतसमासश्रुत जाणवुं. ते घणे पाहुडे एक वस्तु एवे नामें अधिकार थाय बे. जेम अध्ययनना समुदायें सुयरकंध थाय बे, एवो एक पूर्वाधिकार ते सत्तरमुं वस्तुश्रुत जाणवुं. अने एवी बे चार वस्तुनुं ज्ञान, ते अढारमुं वस्तुसमासश्रुत जाणवुं. तथा घणी वस्तुयें एक पूर्व होय, एवा एक उत्पादादिक पूर्वनुं जे ज्ञान, ते जंगपीश पूर्वश्रुत जाणवुं तेमज एक उत्पादपूर्व, बीजुं अप्रायणीय, त्रीजुं वीर्यप्रवाद, चोथुं श्रास्तिप्रवाद, पांचमुं ज्ञानप्रवाद, बहु सत्यप्रवाद, सातमुं श्रात्मप्रवाद, आठमुं कर्मप्रवाद, नवसुं प्रत्याख्यानप्रवाद, दशमं विद्याप्रवाद, अगीयारमुं कल्याण, बारमुं प्राणवाद, तेरमुं क्रियाविशाल, चौदमुं लोकबिंदुसार. ए चौद पूर्वनुं ज्ञान, ते वीशमं पूर्वसमासश्रुत जावं. एम श्रुतना वीश जेद थाय ॥ ७ ॥ ॥ हवे ज्ञान प्रविरत्यादि स्वामिसाधर्म्यजणी श्रुतज्ञान, पढी अवधिज्ञान कयुं. तेना व नेद कहे बे. ॥ अणुगामिवमाणय, पडिवाईयर विदा बढ़ा दी || रिजम विलमई मण, नाणं केवल मिगविदाणं ॥८॥ - अणुगामि के० लोचननी पेरें साथै चाले, ते अनुगामि अवधि ज्ञान. वमाणय के० तथा निरंतर वधे, ते वर्द्धमान अवधिज्ञान परिवार के० खावीने पा जाय, ते प्रतिपाति अवधिज्ञान कहीयें. ए त्रणथकी इयरविदा के० इतरविधा एटले प्रतिपक्षीपणे जेद. जेम के अननुगामि, हीयमान अने प्रतिपाति, ए त्रण मेलवतां बहाही के० व नेदें अवधिज्ञान होय. हवे गाथाना उत्तरार्द्धवमे मनःपर्यव तथा केवल ज्ञान कहे बे, रिजम के० रुजु सामान्यपणे जाणे, ते रुजुमति. अने विजलमई के० विस्तारें जाणे, ते विपुलमति. ए रीतें मपनाएं के० मनः पर्यव ज्ञान बे ने केवल मिगविहाणं के० केवलज्ञान ते एकज विधान एटले नेदें जावं. ए बद्धा मली पांचे ज्ञानना एकावन जेद कह्या ॥ इत्यरार्थः ॥ ८ ॥ १ त्यां जे जीवने, जे स्थानकें अवधिज्ञान उपनुं त्यांथी जेटलुं देत्र, चारे दिशातरफ देखे, तेटलुं क्षेत्र ज्यां ज्यां जे जे देनें जाय, त्यांथी आगल आगल तेटलुं तेटलुंज देखे, ए लोचननी पेरें अनुगामिक अवधिज्ञाननो प्रथम ज्ञेद जाणवो. २ थाने जे दाटना दीपकनी पेरें अथवा श्रृंखलाबद्ध दीवाना प्रकाशनी पेरें ज्यां Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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