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________________ ३श्न कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ.१ तथा उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काले महाविदेहें अनादि अने अनंत जाणवू. अने जावथी जव्यनी अपेक्षायें सम्यक्त्व पामे तेवारें सादि अने केवलज्ञान पामे तेवारें सांत. तथा अजव्यनी अपेदाये कुश्रुत अनादि अनंत बे. ए रीतें सादिश्रुत, अनादिश्रुत तथा सपर्यवसितश्रुत अने अपर्यवसितश्रुत. ए चार नेद पूर्वोक्त नेद साथें मेलवतां बझा मली दश नेद श्रुतज्ञाननो थया. ११ तथा अगीश्रारमुं गमिक एटले सरखा पाठ, लावा, तेणे करी बांध्यु जे श्रुत दृष्टिवाद प्रमुख, ते गमिक श्रुत. १२ बारमुं एनुं प्रतिपक्षी अगमिक श्रुत. ते जिहां पाठ सरखा न होय कालिक श्रुतनी पेरें, ते बारमुं अगमिक श्रुत जाणवू. १३ तेरमुं अंगप्रविष्टश्रुत. ते याचारांगादिक हादशांगीतुं ज्ञान, ते तेरमो नेद. . १४ चौदमुं ते अंगथी बाहेर उपांग, दशवैकालिक, उत्तराध्ययनादिक तथा प्रकरणादिकनुं ज्ञान, ते अंगवाह्यश्रुत. ए चौदमो नेद जाणवो. .. ए रीतें अदरश्रुत, संझी श्रुत, सम्यक् श्रुत, सादि श्रुत, सपर्यवसितश्रुत, गमिक श्रुत, अंगप्रविष्ट श्रुत, ए सात श्रुतना प्रातिपादिक विरोधी सात नेद. जे अनदर श्रुत, असंझि श्रुत, मिथ्या श्रुत, अनादि श्रुत, अपर्यवसित श्रुत, अगमिक श्रुत, अंगबाह्य श्रुत. ए सात नेद मेलवतां चौद नेद श्रुतना कह्या. . तथा अव्य, क्षेत्र, काल, अने नाव. ए चार प्रकारे श्रुतना नेद कहे . त्यां ज. व्यथी पूर्ण श्रुतज्ञानी, श्रादेशे जिनवचनथी सर्वव्य जाणे. क्षेत्रथी सर्वक्षेत्र श्रादेशें जाणे. कालथी श्रादेशे सर्वकाल जाणे, नावथी श्रुतज्ञानी आदेशे सर्वव्यना अनिधेय पर्याय जाणे. एम चार प्रकारें श्रुतज्ञान बे, अने आवरणक्षयोपशम विचित्रतायें अनेक नेद थाय. जे जणी चौद पूर्वधरमांहे एक एकथी अनंतगुण वृद्धि हानीयें करी, चढता पडता गण वलिया होय. ॥६॥ ॥ हवे वीश नेद, श्रुतना कहे . ॥ पजय अस्कर पय सं, घाय पडिवत्ति तहय अणुउँगो ॥ पाहुडपाहुड पाहुम, वतु पुवाय ससमासा॥ ७ ॥ अर्थ-पडाय के पर्याय श्रुत, अस्कर के अदर श्रुत, पय के० पद श्रुत, संघाय के० संघातश्रुत, पमिवत्ति के प्रतिपत्तिश्रुत; तहय के तेमज वली अणुगो के अनुयोगश्रुत, पाहुडपाहुड के० प्राभूतप्राभृतश्रुत, पाहुड के० प्राभृतश्रुत. वनु के वस्तुश्रुत, पुवाय के पूर्वश्रुत, ए दशने वली आगल ससमासा के० समास सहित करीयें एटले पर्यायसमासश्रुत, अदरसमासश्रुत, पदसमासश्रुत,संघातसमासश्रुत, प्रतिप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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