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________________ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १ तिरूप जे ज्ञानावरणीय कर्म, तेणे करी निष्पन्न ते सामान्य ज्ञानावरण मूल प्रकृति कहेवाय . जेम पांच बांगलीए करी एक मुष्टी निष्पन्न थाय बे; मूल, बाल, पत्र तथा शाखायादि समुदायथी जेम एक वृद निष्पन्न थाय बे; अने घृत, गोल तथा कणिकाए करी जेम लामु निष्पन्न थाय डे, तेम मूल पांच प्रकृतिए करी सामान्य झानावरणीय कर्म प्रकृति निष्पन्न थाय बे; तेमज एक एक झानावरणनी उत्तर प्र. कृतिए करी ते ते ज्ञानावरण विशेष निष्पन्न थाय बे. एवी रीते पांच प्रकारनुं झानावरणीय कर्म कर्दा. हवे नव प्रकारचें दर्शनावरणीय कर्म कहे .-गाथामा दर्शनावरणी पदने ठेकाणे काव्य रचनानेलीधे मात्र दंसण शब्द . तेथी श्राखुं पद जाणी लेवु. जेमके, जीम शब्दना उच्चारथी जीमसेन जाणी सेवाय बे; तेम ए पण जाणी लेवं. ते वास्ते शास्त्रोमां कडं डे के पदना एक देशथी आखा पदनो उपचार थाय . ए रीते दंसणचज ए शब्दे करी दर्शनावरणी चतुष्क जाणी लेवं. दृष्टिने दर्शन कहे . अथवा जेणे करी वस्तुनु सामान्यरूप देखाय अथवा परिमाण थाय तेने दर्शन कहिये. तेने श्राबादन करवाना स्वजाववाला जे कर्म ते दर्शनावरणीय कर्म कहेवाय बे. तेनुं जे चतुष्क ते दर्शनावरणचतुष्क कहीयें तथा 'पण निदा' एटले पांच निघा. तेनेविषे चैतन्य कुत्सित एटले अविस्पष्टपणाने पामे ने तेने निघा कहे . तेना पांच प्रकार था बे-निडा, निडा निखा, प्रचला, प्रचला प्रचला, तथा स्त्यानईि ( थीपजी) ए ताप पांच निखाने निडा पंचक कहे बे. एवी रीते चार दर्शनावरणश्रने पांच निझा ए नव प्रकारचें दर्शनावरणीय कर्म . ए दर्शनावरणीय कर्म के डे, ते कहे - वित्तिसमं' वेत्री एटले पोलीथा समान बे. एने प्रतिहार पण कहे . जेम कोई माणसने राजानी पासे कामे जq होय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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