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इंज्यिपराजयशतक. व्याख्या-श्रा संसारनेविषे खण मित्त के क्षणमात्र सुका के सुख ,अने पुःरका के कुःख तो बहुकाल के घणाकाल सुधी . ते वली पगामपुरका के अतिशय पुःख डे; अने श्रनिकामसुका के अतिशय तोडं सुख जे. एमाटे संसार मुस्कस्स विपकनूथा के० संसारने मूकवो थने तेथी विपक्षनूत थर्बु अने ए कामनोगा के काम विषयादिकना जे लोगो ने ते, अणबाण के अनर्थनी खाणी के खाण .॥॥ जेण के जेणे जगंसव्वं के सर्वजगत्ने जितूझं के नेद्यं संताप्यु, एवो पुरप्पा के पुरात्मा कामग्गहो के० कामरूपी ग्रह, ते सव्वग्गहाणं के सर्व ग्रहोने पनवो के उपजावानुं मूल कारण बे, अने सव्वदोसपायट्टी के सर्व दोषोनो प्रगट करनार, एवो महागहो के महोटो ग्रह जाणवो. ॥ २५॥
जद कबुल्लोकळ कंडुअमणो उदं मुणश् सुकं ॥ मोहाउरा मणुस्सा तद कामउदं सुदंविति ॥ २६ ॥ सल्लंकामा विसंकामा कामा
आसीविसोवमा ॥ कामेपबेयमाणा अकामा जंति उग्गइं ॥॥ . व्याख्या-जह के जेम, कठुलोकलुकमुश्रमाणो के खसनो धणी खसने खणतो थको, जो के परिणामे ऽहं के दुःख जोगवे , तोपण तेने सुहंमुण के सुख माने; तह के तेम मोहाउरा के मोदेकरी आतुर एटले पीमित एवा मणुस्सा के मनुष्यो कामऽहं के कामनोगादिकना विषयपुःखने सुहंविंति के सुखकरी जाणे. ॥ २६ ॥ कामा के काम मे ते सद्धं के सालरूप , विसं के विषरूप ले अने श्रासीविसोवमा के सर्पनी दाढमां जे विष ने तेनी उपमाए बे. कामेपछेयमाणा के० ए कामनी मात्र प्रार्थना करतां श्रने अकामा के अणजोगव्ये थके पण जीव उग्गई के पुर्गतिए जंति के जाय. ॥२७॥ विसए अवश्वंता पडंति संसारसायरे घोरे ॥वीसएसु निराविका तरंति संसार कांतारे॥ ॥ खिया अवश्कता निरावश्
का गया अविग्घेणं ॥तम्दापवयणसारे निरावश्केण दोअवं श्॥ व्याख्या-विसए श्रवश्वंता के विषयनी अपेक्षा प्रतिबंध करतां जीव संसार सायरेघोरे के संसाररूपी महा जयंकर एवा समुज्ने विषे पति के पडे डे, अने विसएसु निराविका के विषयने विषे निरपेक्ष होतां थकां संसारकांतारे के संसाररूपी थरण्यने तरंति के तरे जे.॥ २७ ॥बलिया के बलवंत एवा विषयनी अवश्खंता के अपेक्षाथी जे निरावश्का के निरपेक्ष थया, ते श्रविग्घेणं के थविघ्न
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