________________
२६५
लघुदेवसमासप्रकरण. अर्थ- धुरि के प्रथम दोत्रना चउदलकसहस दोसगनउया धुवं के चउद लाख, बे हजार बसें ने सत्ताणुं एटला ध्रुवांक जाणवा. तहा के तथा प्रकारे मसे के मध्यदेवना ध्रुवांक बीश लाख सडसठ हजार बसो ने श्राप जाणवा. : अहींयां प्रथम देवना ध्रुवांक जे चौद लाख बे हजार बसें ने सत्ताणु ने अने दे.
नो श्रांक एक बे. माटे एके गुणीएं तेवारे तेहिज श्रांक श्रावे. तेने बसें ने बार जागे वेहेंचतां हजार बसो ने चौद योजन कारा, एटलो नरत तथा ऐरवतनो श्रादिविस्तार जाणवो. अने बार हजार पांचसें ने एक्याशी योजन कारो मध्य विस्तार , तथा अढार हजार पांचसें ने समतालीश योजन जाफेरो अंत्यविस्तार दे.
हेमवंत ने ऐरण्यवंतनो श्रादि विस्तार बीश हजार चारसे ने अहावन योजन का. केरो बे, मध्यविस्तार पचाश हजार त्रणसे ने चोवीश योजन काफेरो ने, श्रने अंत्य विस्तार चमोत्तेर हजार, एकसो ने नेवु योजन काफेरो . .. हरीवर्ष अने रम्यक क्षेत्रनो आदिविस्तार एक लाख पाँच हजार आठसे ने तेत्रीश योजन कारो , अने मध्सविस्तार बे लाख एक हजार बसें ने अहाणुं योजन का. फेरो , तथा अंत्यविस्तार बे लाख, बन्नु हजार, सातसें ने त्रेसठ योजन काफेरो .
विदेहनो आदि विस्तार चार लाख, त्रेवीश हजार,त्रणसें ने चोत्रीश योजन काफेरो बे, अने मध्य विस्तार आठ लाख, पांच हजार एकसो ने चोराणुं योजन काफेरो, तथा अंत्यविस्तार अगीबार लाख सत्याशी हजार ने चोपन योजन काफेरो जे. ए रीते ए चार स्थानकनो श्रादि, मध्य तथा अंत्यनो विस्तार कह्यो.
अहीं आदि ध्रुवांक चौद लाख, बे हजार, बसें ने सत्ताणुं योजन जाफेरा बे. तेने एक, बार, सोलने चोसठ साथे गुणीएं, पबी बसें ने बार नागे वेहेंचतां यथाक्त मान लाने. अने मध्यध्रुवांक बबीश लाख सडसठ हजार बसें ने श्राप बे. तेने एक, चार, सोल ने चोसठ साथे गुणीने पली बसें बार नागे वेहेचतां पूर्वोक्त मध्य विस्तार लाने, तथा अंत्यनो विस्तार श्रागली गाथामां ३५३११ए बे. तेने एक, चार, सोल, अने चोसठ साये गुणीएं, पडी बसें ने बार नागे वेहेंचतां पूर्वोक्त क्षेत्रनो अंत्य विस्तार यावे. अने उपर जे योजन रहे, तेनी कला करी बसें ने बार नागे वेहेंचीएं, तेलु उपर श्रावे. तेमाटे काफेरा लख्या जे. ॥ २३५ ॥
गुणवीस सयं बत्ती ॥ स सदस गुणयाल लक धुवमते ॥ नश्गिरिवणमाण विसु ॥ इखित्त सोलं सपिहुविजया ॥ २३६॥ अर्थ- जंगणचालीश लाख बत्रीश हजार एकसो ने गणीश एटला धुवमंते के अंत एटले बेमाना ध्रुवांक जाणवा. हवे विजय, परिमाण कहे बे. न के0 अंतर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org