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लघुदेवसमासप्रकरण. दिशाए धातकी खंडनी जगतीना पासाना गयदंता के चार गयदंत गिरि ते दीहा के दीर्घ एटले केटला लांबा ? तो के-पणलरकणसय रिसहसपुगुणा के० पांच लाख उंगणोतेर हजार बसो ने उंगणसाठ एटला योजन खांबा जाणवा. अने श्यरे के० इतर एटले बीजा जंबूहीपनी जगतीनी दिशाना मांहेला चार गयदंत गिरि, जे बे ते त्रण लाख बपन्न हजार बसो ने सत्तावीश योजन लांबा जाणवा. तथा एक बाहेरनो गयदंतगिरि, अने एक मांहेनो गजदंतगिरि ते बन्ने एका करिएं तेवारे कुरुक्षेत्रनुं धनुपृष्ट थाय, तेनुं प्रमाण नव लाख पचीश हजार चारसे ने बयासी योजन थाय. एटलुं धातकी खंमने विषे कुरुक्षेत्रनुं धनुपृष्ट जाणवू. ॥२३॥
॥ हवे वक्षस्कार अंतर नदी प्रमुखनां प्रमाण कहे .॥ खित्ताणुमाणसे, ससेखन विजयवणमुदायामो॥
चनलकुदीदवासा ॥ वासविजयविबरो उश्मो ॥२३३॥ - अर्थ- कुल गिरि तथा गजदंतानां प्रमाण कह्यां अने सेस के तेपली अन्य जे वक्षस्कार, अंतरनदी, विजय, अने वनमुख एनो श्रआयाम के विस्तार ते खित्ताणुमा. ण के क्षेत्रना अनुमाने करी जाणवो. एटले पूर्व धातकी खंड तथा पश्चिम धातकी खंडनु बन्ने खुकार दिशिएं जेवं क्षेत्रनुं लांवपणुं , तेवु वक्षस्कारादिकनुं पण लांबपणुं जाणवू. तथा वासा के पूर्व धातकी खंडनां सात क्षेत्र, अने पश्चिम धातकी खंडनां सात क्षेत्र, ते चजलक के चार लाख योजन दीह के दीर्घ एटले लांबां जाणवां. हवे वास के क्षेत्रना विजयनो विरोउ के विस्तार जे , ते श्मो के आगली गाथाएं कहे डे, ते प्रमाणे जाणवो. ॥ २३३ ॥
खितंकगुणधुवंके ॥ दोसय बारुत्तरेदि पवित्नत्ते ॥
सवन वासावासो॥ हवे इह पुण श्य धुवंका ॥२३४॥ अर्थ- खित्तंक के क्षेत्रना आंक जे एक, चार, सोल ने चोस; एनी साथे गुणधुवंके के ध्रुवांक गुणीएं. पडी दोसयबारुत्तरेहि के बसें ने बारे करी पविनत्ते के० प्रतिजक्त एटले जागे वेहेंचीएं, तेवारे वास के क्षेत्रनुं सबब के सर्वत्र एटसे श्रादि, मध्य अने अंत्य वासो के व्यास एटले विस्तार, ते हवे के होय. पुण के वली श्ह के० ए क्षेत्रने विषेधुवंका के ध्रुवांक जे जे, तेश्य के बागली गाथाए कहे ॥३॥
॥ हवे धातकी खंमना ध्रुवांक कहे . ॥ धुरि चनद लक उसहस ॥ दो सगनल्या धुवं तदा मजे ॥ उसय अडुत्तर सतस, हिसदस बीस लरका य ॥२३५ ॥ ..
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