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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. अर्थ- धातकीखंमनेविषे जे अह, कुंमनुं जंमत के उमपणुं तथा मेरुपर्वत टालीने कुलगिरि, गयदंतगिरि, वक्षस्कार, यमल गिरि, कांचन गिरि अने वैताढ्य प्रमुख पर्वतर्नु मुस्सयं के जंचपणुं, तथा च के वली सुमेरुवज के सुमेरुपर्वत वर्जिने वैताढ्यनो विबरं के विस्तार अने वगिरिणं के बीजा वैताढ्य प्रमुख वृत्तपर्वतनों विस्तार ते सर्व पुवसमंजाण के० पहेलाना सरखो जाणवो. एटले जंबछीपनी पेरे जाणवो. ॥२७॥ ॥ हवे धातकीखंडनेविषे बे मेरु ले ते वखाणे . ॥ मेरुगंपि तहच्चिय ॥ नवरं सोमणसहिहुवरि देसे ॥ सग अडसहस्सऊण, त्तिसहस पणसी उच्चते॥ ॥ अर्थ- धातकीखंमना जे मेरुगंपि के बे मेरुपर्वत बे, ते तहच्चिय के जंब्रहीपना मेरु सरखा जाणवा. पण नवरं के एटटुं विशेष डे के, जे सोमणसहिहवरिदेसेलगअडसहस्सऊण त्ति के सोमनस वन थकी देठे सात हजार योजन, अने सोमनस वन थकी उपरे यार हजार योजन उणा करिएं. इति एटले ए नाव जे जंवछीपना मेरुनी नूमिथी पांचसे योजन उपर चडिएं, त्यां नंदन वन बे. ते थकी उपर साडा बासठ हजार योजन चडीएं, तेवारे सोमनस वन डे, त्यां त्रीश हजार योजन उंचुं पांमुकवन , अने धातकीखंमना मेरुनु एटबुं विशेष जे नूमिथकी पांचसें योजन चंचुं नंदनवन बे, ते थकी साडा पंचावन्न हजार योजन ऊंचे. चडीएं, त्यां सोमनस वन , त्यांथी अहावीश हजार योजन ऊंचा चडीएं, त्यां पांमुक वन , ए चोरासी हजार योजन थया. अने एक हजार योजन नूमिमांहे जंमा बे, एम सर्व मली सहस पण सोश उच्चते के० धातकी खंडना मेरु पंचासी हजार योजन उंचावे.॥२॥ ॥ हवे ते मेरुनो विस्तार कहे .॥ तदपणनवश्चनम्मन ॥ अचनमज य अहत्तीसा य॥ दस य सया य कमेणं ॥ पणगण पित्ति दिहा य ॥२॥ अर्थ- तह के तथा प्रकारे पण नव के नव हजार ने पांचसें, श्रने चमन के नव हजार ने चारसें य के तथा अचजलन के नव हजार त्रणसें ने पचास अने अहतीसा के० त्रण हजार ने आउसो तथा दसयसया के एक हजार एवा पणगय के पांच स्थानकने विषे पिटुत्ति के पहोलपणानो विस्तार, हिघा के मेरुना मूल थकी कमेणं के अनुक्रमे जाणवो. ते आवी रीते जे नव हजार ने पांचसें योजन मूलमा विस्तार बे, अने नव हजार ने चारसो योजन नूतल विस्तार , तथा नव हजार ने साडात्रणसे योजन नंदनवननो विस्तार जाणवो, त्रण हजार ने शौरसें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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