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________________ គុម लघुदेवसमासप्रकरण. ॥ हवे धातकीखंड नामा बीजा छीपनो अधिकार वखाणे .॥ - जामुत्तरदीदेणं ॥ दससयसमपिहुल पणसयनच्चेण ॥ जसुयार गिरिजगणं ॥धायश्संडो जुद विदत्तो॥२५॥ . अर्थ-लवण समुपनी जगती थकी बाहेर वलयने थाकारे चार लाख योजन पहोलो एवो बीजो धातकीखंग नामे हीप बे, ते धायश्संडो के धातकीखंग केहवो बे? तो के-उसुयारगिरिगेणं के खुकार नामे जे बे पर्वत तेणे मुह विहत्तो केबे जागे वेहेंच्यो बे, एटले एक पूर्व धातकीखंड, अने बीजो पश्चिम धातकीखंड ए बे जाग जाणवा. हवे ते षुकार पर्वत केहवा ? तो के-जाम के दक्षिण दिशे, अने उत्तर के उत्तरदिशिएं, दीहेणं के दीर्घ एटले लांबा जे. वली दशसय के दशसो एटले एक हजार योजन समपिहुल के मूलने विषे, अने शिखरने विषे, सरखा पोहोला . तथा पणसयजच्चेण के पांचसे योजन ऊंचा बे. लबण समुज्नी जगतीना दक्षिण उत्तरदिशिना वैजयंत, अपराजित एवे नामे जे बारणांबे, तेमांथी खु एटले बाणने श्राकारे चार लाख योजन धातकीखंगना विस्तार सुधी लांबा निकल्या ले, एवा ते पर्वतो . ॥२५॥ ॥ हवे बे खंमने विषे कुल गिरि क्षेत्र वखाणे .॥ .. खंडगे गिरिणो ॥ सग सग वासा य अर विवररूवा ॥ धुरि अंति समा गिरिणो॥वासा पुणपिलपिहुबयरा॥१६॥ अर्थ- खंमागे के धातकीखंडना पूर्व अने पश्चिम दिशाना एकेका खमनेविषे बगिरिणो के कुलगिरि जाणवा, अने सगसगवासाय के सात सात देत्र जाणवां. ते कुल गिरिदेत्र केवां बे? तो के-घर विवररूबा के० श्खुकार कुलगिरि ते थारा सरखां ने, अने क्षेत्र ते श्राराना विवर एटले जे श्रांतरा होय तेना सरखां बे. जेम गाडीनां पश्माने विषे, वच्चेनी नानि थकी आराना आंतरा होए; तेम जंबछोप अने लवण समुफ ने, ते नानि सरखा ले. अने धातकी खंडमांहे जे खुकार तथा कुलगिरि प्रमुख पर्वत बे ते श्रारा सरखा ने, अने क्षेत्र ते तेना आंतरा सरखां बे. वली गिरिणो के ते कुलगिरि खुकार केहवा ? तो के-धुरि के० मूलने विषे अने अंति के आदेमाने विष समा के० सरखा पहोला . पुण के० वली वासा के० क्षेत्र जे जे, ते लवण समुपथकी मामीने पिहल पिछलयरा के पिहल पिहलतर बे. ॥२६॥ ॥ हवे धातकीखंममाहे जे पदार्थ जंबूलीप माहेला पदार्थ सरखा डे ते कहे जे. ॥ दहकुंडंमत्तममे, रुमुस्सयं विबरं वियढाणं ॥ वट्टगिरिणंच सुमे, रुवजामिद जाण पुवसमं ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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