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________________ २५४ लघुदेवसमासप्रकरण. . .. ॥ हवे चार पाताल कलशना देवता कहे बे.॥ . कालो य महाकालो॥ वेलंब पनंजणोय चनसु सुरा ॥ पलिउवमानणो तद ॥ सेसेसु सुरा तया ॥२०॥ श्रर्थ- चार महोटा पाताल कलशने विषे पूर्वदिशिथी अनुक्रमे दक्षिणावर्त्त जोतां एक काल, बीजो महाकाल, त्रीजो वेलंब अने चोथो प्रनंजन एवे नामे चउसुसुरा के चार देवता अधिष्टायक जाणवा. पण ते देवता केहवा , तो के- पलिवमाउणो के एक पल्योपमनुं श्रायुष्य धरे डे एवा . तह के तथा सेसेसुसुरा के शेष बीजा न्हाना जे कलश तेने विषे जे देवता अधिष्टायक डे, तेमनुं आयुष्य तयझाक के ते पूर्वोक्त देवताना आयुष्य थकी थर्ड ने एटले अर्क पढ्योपमनुं . ॥ २०१॥ सवे सिमदो नागे॥ वाऊ मसिल्लयंमि जलवाऊ ॥के वल जलमुवरिखे ॥नाग उगे तब सासुब्वे॥ २० ॥ अर्थ- सवे सिमहोजागेवाऊ के सर्व महोटा पाताल कलशाना अधो नागें एटले नीचे वायु , अने मजिलयंमिजलवाऊ के मध्य एटले वचला नागें वायु अने जल ए बंने मिश्र . तथा केवल जल मुवरिखे के उपरले नागे केवल पाणीज बे. तो एकेका त्रीजा नागने विषे तेत्रीश हजार त्रणसें ने तेत्रीश योजन उपर एक योजननो त्रीजो नाग होए. एवा नागडुगेतबसासुवे के नीचेना नागनेविषे अने वचला जागनेविषे श्वासनी परे वायु बे, ते आगली गाथाएं वखाणे बे. ॥ २० ॥ बदवे जयारवाया ॥ मुबंति खुति उमिवारा ॥ एग अढोरत्तो॥ तया तया वेल परिही ॥ २०३ ॥ अर्थ- एवा बे नागना वायुनेविष बीजा बहवे के घणा उयार के उदार एटले महोटा वाया के वायरा ते मुळंति के मले बे, ते मलीने पाणीने खुहंति के दोन पमाडे जे. जेम माणसना पेटमांहे वायुनी वृद्धि थवाथी दोन पमाडे, शब्द करे तेम पातालकलश ते एग अहोरत्तो के एक अहोरात्र मांहे पुलिवारा के बे वखत दोन पमामे , तयातयावेलपरिवुढ्ढी के ते तेवारे पाणीना वेलनी वृद्धि थाय बे; एटले जेवारे वायुना जोरथकी कलशा उत्नराय ने तेवार समुज्नुं पाणी वधे , एवो अनादिकालनो सहेजश्री चाल जे. जे एक अहोरात्रमांहे बे वार पाणीनी वेल वधे एम जाणवू. ॥ २३ ॥ ॥ हवे समुज्माहे वेलंधर देवता ले ते वखाणे .॥ बायालसहि उसयरि॥ सहसा नागाण मसवरि बाहिं॥ वेलं धरंति कमसो॥ चनहत्तरुलकु ते सवे ॥ २०४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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