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________________ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. २५३ पुवाश्सु के पूर्वदिशि थकी धुरमांडीने दक्षिणावर्त्त गणतां एक वडवामुख बीजो केजुव के० केयूप, त्रीजो जूवे के यूप, चोथो श्सर के ईश्वर, अनिहाणा के० एवे नामे चार पातालकलशो जाणवा. ॥ ९एए॥ ॥ हवे न्हाना पातालकलश वखाणे . ॥ अले बहुपायाला ॥ सगसहसा अडसया सचुलसीया ॥ पुवुत्त सयंसपमा, णा तब तबप्पएसेसु ॥२०॥ अर्थ- असे के बीजा लहुपायाला के न्हाना पाताल कलशा ते सगसहसा अडसयासचुलसीया के सात हजार बाउसो ने चोराशी , ते केहवा ? तो के-पुवत्त के पूर्वे वखाएया बे, जे चार महोटा पाताल कलशा ते थकी सयंसपमाणा के सोमा अंसे जेमनुं प्रमाण ने एहवा बे, एटले सोमे नागे , अर्थात् तेनी दश योजननी ठीकरी जाडी , तथा एकसो योजन प्रत्येक हेठे तथा उपर पहोला , अने एक हजार योजन नूमिमांहे जंडा बे, एवा न्हाना कलश ते जे स्थानके महोटा कलशे नूमीका रूंधी नथी; तेवा जलमेखलाना तह तप्पएसेसु के० ते ते प्रदेशे ए कलश बे, एटले गमगमने विषे . ते केमके समुजमाहे दश हजार योजन विस्तार जे पाणी बे, तेहनी मांहेली परिधि श्राणीएं. ते आवी रीते के-जंब्रहीप थकी पंचाणु हजार योजन जातां बे लाख ने नेवु हजार योजन विष्कंन , तेनो वर्ग करीएं तेवारे आठ हजार चारसे ने दश कोमी थाय. तेने दशगुणा करीएं तेवारे चोरासी हजार ने एकसो कोमी थाय. तेनुं मूल शोधीएं तेवारे नव लाख सत्तर हजार ने उपर साठ लन्यमान थाय. तेमाहेथी चार कलशे चालीस हजार योजन संध्या बे, ते बादकरतां बाकी श्राप लाख सीतोत्तेर हजार ने उपर साठ रहे . तेने चारजागे वहेंचीएं तेवारे बे लाख उंगणीस हजार बसो ने पांसठ एकत्नागे श्रावे; तो एक महोटो पूर्वदिशिनो पातालकलश श्रने बीजो दक्षिण दिशिनो पातालकलश ते बेहुनु एटबुं अंतर जाणवू. हवे त्यां एकेका अंतरे एकेक श्रेणीनेविष बसें ने पन्नर कलश होएं, ते कलशोएं बे लाख पन्नर हजार योजन संध्या डे. अने बाकीना चार हजार बसो ने पांसठ योजन में रह्या ते कलशनी ठीकरीने जामपणे रुंध्या बे, एम प्रथम न्हाना कलशनी श्रेणीने विषे बसें पन्नर कलश, बीजीनेविषे बसें ने सोल, एम एकेको कलश वधारतां बधी नव श्रेणी , तो नवमी श्रेणीनेविषे बसें ने त्रेवीश कलश . एरीते एक श्रांतरानेविषे न्हाना कलश एक हजार नवसे ने एकोत्तर थाय. तेवा चारेदिशिना एकठा करतां सात हजार श्रावसो ने चोराशी न्हाना कलश थाय.इति २०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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