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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. अर्थ- हेमवएरमवए के हेमवंत अने ऐरण्यवत तथा हरिवासे के हरिवर्ष क्षेत्र य के वली रम्मए के० रम्यकदेत्र ए चार क्षेत्रनेविषे रयणमया के सर्वरत्नमय एदवा सदावर के शब्दापाती तथा वियडाव के विकटापाती अने गंधावर के गंधापाती तथा मालवंतका के मान्यवंत ए नामे चउवदृवियड्ढा के चार वृतवैताढ्य अनुक्रमे जाणवा. ए वृतवैताढ्य केहवा ? तो के-सा के स्वाति तथा अरुण के अरुण तथा पजम के० पद्म तथा प्रजास एहवा नामे देवताना आवास ने जेमनेविषे, एवा. तेमां शब्दापाति वैताढ्यने विषे स्वातिदेव वसे. तथा विकटापाती वैतात्यने विषे अरुणदेव अने गंधापाति वैताढ्यने विषे पद्मदेव तथा मालवंत वैताढ्यनेविषे प्रजासदेव वसेजे. एम अनुक्रमे जाणवा. हवे ए वृतवैताढ्यनो परिमाण कहे. मूलुवरि के० मूलनेविषे तथा उपर जे शिखर ले तेहनेविषे जोयणंसहसंपिहुत्ते के सहस्र योजन पहोला , तह के तथा प्रकारे उच्चत्ते के ऊंचपणे पण सहस्र योजन जाणवा. शति गाथार्थ. ॥ १०ए ॥ ११०॥ ॥ हवे जंबूछीपना मध्यनेविषे जे मेरुपर्वत ,ते मेरुनु स्वरूप कहे. ॥ मेरू वट्टो सदस्स ॥ कंदो खस्कूसि सदसनवरि ॥ दसगु णजुवि तं सनव॥ दसिगारंसं पिहुल मूले ॥ १११ ॥ अर्थ- मेरूवट्रो के मेरुपर्वत ते कनकमय वाटलो जाणवो. तथासहस्सकंदो के० सहल योजननो कंद एटले मूल सहस्र योजन पृथ्वीमांहे , तथा लस्कूसिड के लाख योजन ऊंचो बे. अहीं ए नावार्थ जे जे सहस्र योजननो कंद अने उपर नवाणु सहस्र योजन, उंचपणुं . एरीते कंदसहित लाख योजन उंचो बे. तथा सहसनवार के उपर एटले शिखरनेविषे सहस्र योजन पिहुल के विस्तीर्ण डे, तं के ते सहल योजनने दसगुण के० दशवार गुणतां दस सहस्र थाए, तो दस सहस्र यो. जन नुवि के पृथ्वीने विषे पिहल के०पोहोलो जे. वली मेरु केहवो? तंसनव के ते दससहस्त्र योजनने नेवुएं सहित करी उपरे दसिगारंसं के० योजनना अगीश्रार जाग करीए तेवा दस नाग एटले दससहस्र नेवु योजन अने उपर एक योजनना अगीयार नागमाहेला दसनाग एटलो मूलश्री हेगे कंदने विषे पोहोलो डे ॥ १११ ॥ ॥हवे मेरुना त्रण खंग एटले नाग तेहनुं स्वरूप कहे.॥ पुढवुवल वयर सकर ॥ मयकंदो जवरि जाव सोमणसं॥ फलिहंक रयय कंचण ॥ मय जंबूण सेसो॥१२॥ अर्थ- पुढवुवलवयरसकरमयकंदो केव पृथ्वी एटले माटी अने उपल एटले पाषाण तथा वयर के वज्ररत्न तथा सकर के कांकरा ए चार पदार्थनो मेरुनो कंद जाणवो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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