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वघुदेवसमासप्रकरण.
२१७ तथा उत्सर्पिणीना बार आराना कालचकमि के कालचक्रनेविषे वीसंसागरकोमाकोमी के वीस कोमाकोडी सागरोपम थाए. इति गाथार्थ. ॥ १७ ॥
॥हवे चार क्षेत्रनेविषे चार श्रारानुं सरखापणुं कहे .॥ कुरुगि दरिरम्मयगि ॥ देमवएरमवश्गि विदेहे ॥
कमसो सया वसप्पिणि ॥ अरयचउक्काइसमकालो॥१०॥ अर्थ- कुरुपुगि के देवकुरु तथा उत्तरकुरु ए बे देोत्रनेविषे तथा हरिरम्मयऽगि के हरिवर्ष तथा रम्यक ए बे देत्रनेविषे तथा हेमवएरमवश्ऽगि के हेमवत तथा एरण्यवत ए बे क्षेत्रने विषे तथा विदेहे के पूर्व विदेह श्रने पश्चिम विदेह क्षेत्रनेविषे ए चार क्षेत्रना युगलनेविषे कमसो के अनुक्रमें करी सया के सदाकाले अवसप्पिणीअरयचजकाइसमकालो के अवसप्पिणिकालना चार आरानो प्रथम काल जाणवो. ते केम? अवसप्पिणी कालनो पेहेलो आरो सुखमसुखमा तेहना धुरनो जेहवो काल होए तेहवो काल सदैव देवकुरु अने उत्तरकुरु ए बे कुरुक्षेत्रनेविषे होए. यथा ॥ दोसुविकुरुसुमणुश्रापबपरमाउणोतिकोसुच्चा ॥ पिठकरंमसयाई दोबप्पन्नाश्मणुयाणं ॥१॥ सुसमसुसमाणुनावं अणुनवमाणाणवञ्चगोवणया अजणापन्न दिणार अहमनत्तस्साहारो ॥२॥ एम बीजा थारानो जेहवो प्रथम काल होए तेहवो सदैव हरिवर्ष तथा रम्यक ए बे देोत्रनेविषे होए. यथा ॥ हरिवासरम्मएसु ॥ आउपमाणंसरीरमुस्सेहो पलिवमाणिन्निज उन्नीकोसुस्सियानणिया ॥३॥ बहस्सयाहारो चउसहिदिणाणुपालणातेसि पिछिकरंडाणसयं अहावीसयमुणेयवं ॥४॥वली त्रीजा थारानो जेहवो प्रथम काल होए तेहवो सदैव हेमवंत तथा एरण्यवतमांदे होए. यथा ॥ गाउयमुच्चापलिउवमाश्णो वारिसहसंघयणो हेमवएरमवए अहंमिहनरा मिषुणवासी ॥५॥ चउसहिपिंडयाणि मणुआणीतेसिमाहारो जत्तस्सयचउबस्सय अउणासिदिपाणवचपालण्या ॥६॥ तथा चोथा आरानो जेहवो प्रथम काल होए तेहवो महाविदेहक्षेत्रनेविषे सदा जाणवो. यथा ॥ पंचसुजरहेरवएसु तय विदेहेसु पंचदशसंखा॥ नणियाउकम्मनूमीसुतीसपुणजोगनूमीसु ॥ ७॥ हेमवयंह रिवासं उत्तरकुरुतहयदेवकुरुनामा रम्मयएरमवयं एयाउँनोगनूमी. ॥ १० ॥
॥ हवे चार वैताढ्यनुं स्वरूप बे गाथाए करी कहे.॥ देमवएरमवए ॥ दरिवासे रम्मए य रयणमया ॥ सदा व वियडावश्॥गंधावश् मालवंतरका ॥१०ए॥चन ववियहा सा, इ अरुण पनम पत्नास सुरवासा ॥ मूलुवरि पिटुत्ते तद ॥ उच्चत्ते जोयणं सहसं॥१२॥
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