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________________ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. १५ ॥ हवे पांचमा श्रारानु स्वरूप कहे . ॥ वरिसेगवीससदस, प्पमाण पंचमरए सगकरुवा ॥ तीसहियसया उ नरा ॥ तयंतधम्माश्याएंतो ॥१०॥ अर्थ- वरिसेगविससहसप्पमाणपंचमरएके एकवीस सहस्र वरसनुं प्रमाण पांचमा श्रारानुं बे, ते पांचमा आराने विषे सगकरुच्चा के सात हाथ ऊंचा नरा के मनुष्य होय उ के तुपुनःतीसहियसया के त्रीसें अधिक सो एटलें एकसो ने त्रीस वरसनां श्रायुष्य मनुष्यनां होए तथा तयंतधम्माश्याएंतो के ते पांचमा थाराने अंते जिनधर्मादि पदार्थ- पण अंत एटले नाश थशे. व्यवहार, आचार, नीति, जाति सर्वनुं अंत श्रावशे, ए वात सिद्धांतमां कही जे. एटला बोल विछेद जशे ते कहे . यथा ॥ सुयसूरि संघधम्मो ॥ पुत्वन्हे निहिही अगणि सायं ॥ निव विमलवाहणो सुह, ममंति तझम्म मकण्हे ॥ १॥ उप्पसहो समणाणं फग्गुसिरि हो। साहुणिणंच सट्ठो नाश्व नामा सच्चसिरि सावियाणंच ॥२॥ पुवाए संजाए वोडेहोश्चरणधम्मस्स मान्नेरायाणं अवसरणे जायतेयस्स ॥ इति गाथार्थ. ॥ १० ॥ तेवारपडी शुं थशे ते कहे . ॥ खारग्गिविसाईहिं । दाहानूया कया पुदवीए ॥ खग बीयवियहाइस ॥ नाराश्वीयं बिलाईसु ॥ १०३ ॥ - अर्थ- खारम्गिविसाईहिं के लवणादिखार तथा अग्नी अने विष ते कालकूटादि तेनी वृष्टि तेणेकरी हाहानूयाकयाश्पुहवीए के पृथ्वि जे जे ते हाहाकार करशे, तथा खगबीय के० पदी जाति प्रमुखनां जे बीज डे ते वियद्वाश्सु के० वैताढ्य प्रमुख पर्वतने विषे रहेशे, तथा नराश्वीयं के मनुष्य तथा तिर्यंचनां बीज ते सर्व विलासु के बिलादि स्थाननेविषे रहेशे. इति गाथार्थ ॥ १०३ ॥ ॥हवे ते बिल वखाणे . ॥ बहुमउचकवदन ॥ चनक्कपासेसु नव नव बिलाइं॥ वेयहोनयपासे ॥ चनयालसयं बिलाणेवं ॥ १०४ ॥ अर्थ- वेयवोनयपासे के० वैताढ्यना बे पासाने विषे बहुमछचकवहनश्चउक्कपासेसु के० घणां ने माउला ज्यां वली चक्क केशकट जे गाउँ तेनुं चक्र तेदनी धारा सरखो डे वद के प्रवाह जेहनो एहवी जे गंगा अने सिंधू तथा रक्ता अने रक्तवती नामे जे न के नदी तेहना बे तटनेविषे नवनवबिलाई के नव नव बिल ते गुफासरखा जाणवा. एटले दक्षिणनरतमांहे बे नदीना तट चार . अने उत्तरजरतमांहे बे नदीना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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