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________________ १० लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. वरदामो के० वरदाम एवे नामे तीर्थ . ए रीतेश्ह केल्या जंबुद्धीपनेविषेजे चोत्रीश क्षेत्र के तेमाहे एकेक क्षेत्रे त्रण त्रण तीर्थ गणतां सवे के सर्वे बिमुत्तरसयंति के एकसो ने बे तीर्थ थाय, माटे आ जंबूछीपनेविषे सर्व मलीने एकसो ने बे तीर्थ जाणवां. ॥ हवे जरत तथा ऐरवतमांहे कालचक्रनुं स्वरूप कहे . ॥ जरदेवए ब ब अर ॥ मयवसप्पिणि जसप्पिणीरूवं ॥ परिनम कालचकं ॥ ज्वालसारं सयावि कमा॥ ए० ॥ अर्थ- जरहेरवए के जरत तथा ऐरवत क्षेत्रमांहे बबरमयावसप्पिणीउसप्पिपीरूवं के बारे करी अवसर्पिणी अने आरे करी उत्सपिणी ते रूप वालसारंकालचकं के बार आरान कालचक्र . ते सयावि के सदाकाल अनादिअनंतपणे पण परिजमश्कमा के अनुक्रमे ब्रमण पामे .॥ ए॥ ॥ हवे ए बार थारानां नाम कहे . ॥ सुसमसुसमा य सुसमा ॥ सुसमउसमा य उसमसुसमा य ॥ उसमाय उसमसमा ॥ कमुक्कमा उसुवि अरबकं ॥ २ ॥ अर्थ- प्रथम आरो सुसमसुसमा के सुखम सुखमा, य के० वली बीजो थारो सुसमा के० सुखमा, त्रीजो श्रारो सुसमासमा के सुखमकुखमा, य के० वली चोथो आरो उसमसुसमा के० मुखमसुखमा, य के वली पांचमो थारो उसमा के उखमा, बगे यारो उसमसमा के पुखम मुखमा, ए अरबकं के० ए आरा बे ते अवसप्पिणिकालने विषे कम के अनुक्रमे एटले प्रथम सुखमसुखमाथी गणीएं, अने उत्सपिणी कालें जकमा के श्रवला एटले मुखमपुखमाथी धुरमांमी गणीएं, एम बार बारा चमता पमता जाणवा, चक्रनी पेठे फिरतां आवे माटे कालचक्र कहीएं. अवसप्पिणी ते घटतो काल होए अने उत्सप्पिणी ते चडतो काल होए. ॥ ए१॥ ॥ हवे सागरोपमनुं मान कहे . ॥ पुवुत्त पक्षिसमसय ॥ अणुगदणा निहिए दव पलि ॥ दसकोडिकोमि पलिए ॥ हिं सागरो होइ कालस्स ॥ ए॥ अर्थ-पुवुत्तपति के पूर्वोक्त पठ्य एटले प्रथम कडं जे असंख्यात रोम अणुए जस्यो जे योजन प्रमाणे पख्य तेमांथी समसय के सोसोवरसें अणुगहणानिहिए के एकेक सूक्ष्म खंग काढतां जेटले कालें ते पथ्य खाली थाए तेटले कालें पति के पथ्योपमनुं कालस्स के कालमान हव के० थाय. दस कोमिकोमि पलिएहिं के एहवा दस कोमाकोडि पत्योपमेकरी सागरोहोर के एक सागरोपम कालनुं मान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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