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________________ लघुक्षेत्र समासप्रकरण. २०० to बांध्यो ठे, पांखनी रचनाएं करी सलिलाई के० पाणी जेमनो. वली ते गुफा के - हवी बे ? जाचक्की के० ज्यांसुधी चक्रवर्त्ति जीवे ता के० त्यांसुधी ता के० ते गुफाउं बे. ते जग्घमियदारा के० उघाडेला बे कमाम जेमना एहवी थकी चिडंति के० रहे बे. इति गाथार्थ ॥ ८१ ॥ || हवे दक्षिणनरतमांदे अयोध्यानगरीनो परिमाण कहे बे. ॥ बदिखंडतो बारस ॥ दीहानव विचडा अनऊपुरी ॥ सालवणावेयढा ॥ चजददि यसयं चिगारकला ॥ ८८ ॥ अर्थ- बहिखंडतो के दक्षिणार्द्ध जरतना मध्यखंडनी वचमां बारसदीदा के० बारयोजन दीर्घ एटले लांबी अने नवविवडा के० नव योजन पोहोली एहवी - पुरी केoयोध्या नामे पुरी एटले नगरी सा के० ते अयोध्यानगरी जे बे ते लवगावेया के लवणसमुद्र ने वैताढ्यथी चउदहियसयं चिगारकला के० एकसो चद योजन ने उपर अगर कलाने यांतरे जाणवी. ते केमके दक्षिणा - रतना मध्यखंनो विस्तार बसें खात्रीस योजनाने त्रण कला बे. ते मध्येथी - याध्यानगरीनो विस्तार नव योजन काढीएं तेवारे बसें ने उगणत्रीस योजन अने उपर कला त्रण रहे बे. तेहनुं अर्द्ध एकसो चउद योजन तथा एक योजन उगस्यो तेहनी जंगणीश कला करिएं तेनी साथे मूलगी त्रण कला जेलतां बावीश कला थाए तेइनुं अर्द्ध श्रगीचार कला थाय, एटले एकसो चौद योजन अने उपर अगीयार कला बे, तेटली लवणसमुद्र ने वैताढयने अंतरे अयोध्यानगरी वेगली जाणवी : इति गाथार्थ ॥ ८८ ॥ ॥ हवे मगधादि तीर्थ कहे बे. ॥ चक्विसनइपवेसे ॥ चिगं मागदो पन्नासो य ॥ तातो वरदामी ॥ इद सधे बिडुत्तर सयंति ॥ ८० ॥ अर्थ- चक्किवसनपवेसे के० चक्रवर्त्तिने वसवर्त्ति एवी क्षेत्रनी जे नदी एटले जरत, ऐरवत ने बत्रीश विजय एवं चक्रवर्त्तिनां चोत्रीस क्षेत्र बे. तेहनी जे गंगा, सिंधू, रक्ता छाने रक्तवती जे नदी बे, एहने समुद्रमांदे प्रवेश करतां तथा बत्रीश विजयने विषे सीतोदा नदी तथा सीता नदीमांहे प्रवेश करतां तिबडुगं के बे तीर्थ जावा. तीर्थ एटले जे स्थानकनेविषे नदी समुद्रमांदे तथा सीतोदा सीतामां प्रवेश करे ते स्थानक विशेष नदी सागर संगम उत्तम स्थानक कहीएं. ते तीर्थना नाम एक पूर्व दिशिएं मागहो के० मागध, बीजुं पश्चिम दिशिएं पासो के० प्रजास ए बेनाम तीर्थनां बे; ताणंतर के० ते मागध तथा प्रजास ए बे तीर्थना वचमां एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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