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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. तेमाटे सोल वृक्षस्कारना चोसह कूट जाणवा. तेहनां नाम-बे पासे बेबे विजयने नामे बे कूट, त्रीजो वक्षस्कारकूट, चोथो महानदीनी दिशिए सिझकूट, ए चार नामे सोल वृक्षस्कारना चोसह कूट जाणवा.॥६५॥ सोमणसि गंधमायणि ॥ सग सग विझुपनिमालवंति पुणो॥ अहह सयलतीसं ॥ अड नंदणि अ करिकूडा ॥६६॥ अर्थ-सोमणसिगंधमायणि के सोमनस अने गंधमादन ए नामे जे गजदंतगिरि तेमने विषे सगसग के सात सात कूट जे. तेहनां नाम कहे . पहेला मेरुनी दि. शीथी सिझकूट, तेवारपडी निषधपर्वतनी सन्मुख सोमणसकूट, मंगलावतीकूट, देवकुरुकूट, विमलकूट, कांचनकूट, अने विशिष्टकूट. ए सात कूट सोमनस उपर बे. तथा गंधमादन नामे गजदंत गिरिने विषे जे सात कूट ले ते कहे बेः-मेरुदिशिए सिडकूट, तेवार पडी अनुक्रमे नीलवंत सन्मुख गंधमादनकूट, गंधकूट, उत्तराकूट, स्फाटिककूट, लोहिताकूट, अने आनंदकूट. ए सात कूट गंधमादन उपरे . पुणो के वली विझुपनिमालवंति के विद्युत्प्रन तथा मालवंत ए बे गजदंतगिरिने विषे अहह के० आठ आठ कूट बे. ते मध्ये जे प्रमथ विद्युत्प्रन ले तेहना आठ कूटनां नाम कहे जे. मेरुदिशिएं सिझकूट, त्यारपठी अनुक्रमे निषध सन्मुख विद्युत्प्रनकूट, देवकुरुकूट, ब्रह्मकूट, कनककूट, खस्तिककूट, सीतोदाकूट, अने खयंजलकूट, अहींयां नवमो हरिकूट ,ते सहस्रांककूटमांहे गणशे.अहींयां तो श्राउ गण्या जे. बीजो मालवंत गजदंतगिरि नेविषे बाउ कूट , तेहनां नाम कहे . मेरुदिशिएं सिझकूट, त्यारपबी अनुक्रमे नीलवंत पर्वत सन्मुख मालवंतकूट बे, उत्तरकुरुकूट, कछकूट, सागरकूट, रजतकू. ट, सीताकूट, अने पूर्णनजकूट. अहींयां पण नवमो हरिसहकूट बे; ते सहस्रांकमां गणशे. 'ए प्रमाणे गजदंतगिरि चार, तेमना सयल के सर्व मलीने तीसं के० त्रीश कूट बे. अने बे अधिक वे ते सहस्रांकमां गणशे. तथा नंदणि के० नंदनवननेविषे श्रम के आठ कूट बे. ते ईशाण कोणना प्रासाद बने पूर्व दिशिना जिननवन वच्चे बे. तेहनां नाम कहे बे. नंदनकूट, त्यांथी दक्षिणावर्त्त फरतां मंदरकूट, निषधकूट, हैमवंतकूट, रजतकूट, रुचककूट, सागरचित्रकूट, अने वज्रकूट. अहींयां पण नवमुं ईशानकोंणे बलकूट जे, ते सहस्रांकमांहे गणशे. अने अधकरिकूमा केरा मेरुपर्वतनी पासे समजूतल उपर जे जशाल वन डे, त्यां सीता नदीनी उत्तरदिशिने कांठे प्रथमा पद्मोत्तर कूट, त्यांथी दक्षिणावर्त्त फरतां नीलवंतकूट, सुहस्तिकूट, अंजनगिरिकूट, कुमुदकूट, पलासकूट, अवतंसकूट, अने रोचन गिरिकूट, ए आठ कूट हाथीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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