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लघुक्षेत्र समासप्रकरण.
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गंगा प्रमुख बार नदी, ए सर्व एकठी करतां असयरी महान के० श्रोतेर महानदी एटले महोटी नदी जावी. अने बत्रीश विजयनी बारस अंतर नई to बार अंतर नदी ए मुलगी नदी बे. सेसाई के० बाकी बीजी परियर नइ के० परिवारनी नदी चउदस लरका बप्पन्न सहस्साय के० चौद लाख ने उप्पन्न हजार जावी. इति गाथार्थ ॥ ६४ ॥
॥ हवे व कुल गिरिना कूट एटले शिखर तेमना संबंधी विचार कहे बे. በ एगारड नवकूडा ॥ कुलगिरि जुयल त्तिगे वि पत्तेयं ॥ इय बप्पा च चन ॥ वरकारेसुत्ति चनसठी ॥ ६५ ॥
अर्थ - कुल गिरिजुयल त्तिगे के० कुल गिरिना त्रण युगलने विषे एगारमनवकूडा के० अगीयार, आठ, नव एम अनुक्रमे कूट जाणवा. ते केम ? हिमवंत ने शिखरीपर्वतने विषे एकेक पर्वते श्रगीयार कूट बे, तथा महाहिमवंत ने रुक्मी पर्वतने विषे एकेक पर्वते या या कूट बे. निषेध तथा निलवंतने विषे एकेक पर्वते नव नव कूट बे. हवे ते कूटनां अनुक्रमे नाम लखे बे. प्रथम हिमवंतना श्रगीयार छूट बे ते, पूर्व दिशि, श्री धुरे मांगी जाणवा. पूर्व दिशिए पहेलो सिद्धकूट, हिमवंतकूट, जरतकूट, इलादेवी कूटगंगावर्त्तनकूट, श्रीकूट, रोहितांशाकूट, सिद्धावर्त्तनकूट, सुरादेवीकूट, हैमवंत कूट, अने वैश्रकूट - हवे शिखरीना अगी यार कूट बे ते पण पूर्वदिशिएं - प्रथम सिद्धकूट, शिखरीकूट, ऐरएयवंतकूट, सुवर्णकूला कूट, श्रीदेवीकूट, रक्तावर्त्तनकूट, लक्ष्मी कूट, रक्तवत्यावर्त्तनकूट, गंधावतीकूट, ऐरवतकूट, अने तिगिकूिट - ए अगी धार कूट शिखरी पर्वतने विषे बे. - हवे महाहिमवंतना या कूट कहे बे. पूर्वदिशिएं पहेलो सिद्धकूट, महाहिमवंतकूट, हेमवंतकूट, रोहितांशकूट, ह्रीकूट, हरिकांताकूट, हरीवर्षकूट अने बैडर्यकूट, ए आठ कूट महाहिमवंतना जाणवा. हवे रुक्मीना आठ कूट कहे बे. प्रथम पूर्व दिशिएं सिद्धकूट, रुक्मीकूट, रम्यकूकूट, नरकांता कूट, बुद्धिकूट, रुप्पकुलाकूट, ऐरण्यवतकूट, मणिकांचनकूट, - ए आठ कूट रुक्मी पर्वत उपर बे. हवे निषधना नव कूट
a. प्रथम पूर्वदिशिए सिद्धकूट, निषधकूट, हरिवर्षकूट, पूर्वविदेहकूट, डीकूट, धृति कूट, सीतोदाकूट, अपरविदेहकूट, अने रुचककूट, ए निषध पर्वतना नव कूट जावा. हवे नीलवंतना नव कूट कहे बे. प्रथम पूर्वदिशिएं सिद्धकूट, नीलवंतकूट, पूर्वविदेहकूट, सीताकूट, कीर्तिकूट, नारीकांतकूट, अपर विदेहूकूट, रम्यक्कूट, अने उपदर्शनकूट, ए नीलवंत पर्वतना नव कूट जाणवा. ए बकुल गिरिना सर्व मली बप्पन कूट तेनां नाम कह्यां ते जाणवा. घटचउवरकारेसुत्ति के० सोल वक्षस्कार पर्वतने विषे एकेके वक्षस्कारे चार चार कूट बे. तो सोलने चारे गुणतां चोसठ कूट याय;
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