________________
२५०
संग्रहणीसूत्र. रनी पहोलाण पूर्वे घटामीएं एटली उत्कृष्टी सिद्धीनी अवगाहना होय. अने जघन्य अवगाहना सात हाथनो त्रीजो नाग घटामीएं तेवारे चार हाथ ने सोल अंगुल जघन्यथी सिफनी श्रावगाहना होय. इति मणुयदारं सम्मत्तं ॥ २५ ॥
तिरियदारं जमई एटले श्राते प्रतिद्वारे करी मनुष्यनुं छार समाप्त थयु. हवे तिर्यंच हार कहे . इहां तिर्यंचने पण एक जुवनहार वर्जीने बाकी आठ प्रतिहार कहेशे. श्हां एकेंजी, बेंडी, तेंडी, चौरेंडी, ने पंचेंडी, ए पांच प्रकारे तिर्यंच जाणवा. तेमां पृथ्वी, आप, तेज, वायु, ने वनस्पति रूप पांच प्रकार एकेंजीना जाणवा. अने तेनी साथे बेंडी, तेंडी, चौरेंजी ने पंचेंडि मली चार नेलतां नव नेद थाय. तेमां वली पंचेंगीना बे नेद . एक गर्जज बीजा संमूर्बिम. तेमां ॥ गर्नजनी अपेक्षा विना सामान्य पणे नव नेदे तिर्यंचनुं स्थितिछार कहे . ॥
बावीस सगति दस वास ॥ सहस गिणिति दिण बेंदियाई सु॥ बारस वासुण पण दिण ॥म्मास तिपलिय हिश जिग ॥श्य॥ अर्थ- पृथ्वीकायनी स्थिति एटले आयुष्य ते उत्कृष्टथी बावीस हजार वर्ष. एम अपकायनी उत्कृष्टि स्थिति सात हजार वर्ष. वायुकायनी उत्कृष्टि स्थिति त्रण हजार वर्ष. वनस्पति कायनी उत्कृष्टि स्थिति दश हजार वर्ष. अग्नीकायनी उत्कृष्टी स्थिति त्रण दिवसनी. बेंजीनी उत्कृष्टी स्थिति गणपचाश दिवशनी. चऊरेंजीनी उत्कृष्टी स्थिति ब महीनानी. पंचेंजीनी उत्कृष्टी स्थिति त्रण पढ्योपमनी. ए उत्कृष्टी स्थिति निरुपजव स्थानके रहेतां जाणवी. अने जघन्यतो सर्वने अंतर मुहर्त स्थिति बे. ते वात श्रागल कहेशे. ए सामान्यपणे तिर्यंचनी स्थिति कही. ॥ श्एए ॥
॥ हवे प्रथम श्हां पृथ्वीकायना नेद कहे . ॥ सहाय सुझ वालुय ॥ मणोसिला सकरायखर पुढवी ॥
ग बार चनद सोलस ॥छारस बावीस सम सहसा ॥२६॥ अर्थ-सुहाली मारवाड देशनी पृथ्वीनी सुकुमाल माटी तेनुं उत्कृष्टायु एक हजार वर्ष, अने शुरू ते गोपीचंदन अथवा कुमार मृतिकानुं बार हजार वर्षतुं श्रायुष्य, वालुय के नदिप्रमुखनी वेखुनुं चौद हजार वर्षायु, मणसिल- सोल हजार वर्षायु, श्रने सकराय के शर्करा हरताल सुरमादिकनु अढार हजार वर्षायु, अने खर पृथ्वी ते सिला पाषाण रत्नादिक प्रमुखनुं आयुष्य बावीस के बावीस सम के० वर्ष सहसा के हजार एटले बावीस हजार वर्षायु जाणवू. ॥ २६० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org