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________________ संग्रदणीसूत्र. ॥ दवे ए देवतार्जुनो जघन्य विरहकाल देखाडी पढी चवण ॥ विरहकाल संदेपे देखाडे बे. ॥ सवेसिंपि जन्नो॥ समर्ज ए मेव चवण विरहोवि ॥ इग ति संख मसंखा ॥ इगसमए हुंतिय चवंति ॥ १४६ ॥ अर्थ- समस्त जुवनपति यादे देश सर्वार्थसिद्ध पर्यंत देवतानां सर्व स्थानके पि ho निश्चय की जन्नो के० जघन्यपणे समर्ज के० एक समये उपजवानो विरहकाल होय. एमेव के० एमज उपपात विरहनी परे चवणविरहो के० चत्रण विरह पण उत्कृष्ट तथा जघन्यपणे जाणवो हवे उपपात छाने चवन ते या श्री देवोनी संख्या कहे बे. इग के० एक ghoda ति के० त्रण यावत् संख के० संख्याता तथा असंखा के० श्रसंख्याता देवता ते इगसमए के० एक समयने विषे हुंति के० होय. एटले उपजे. छाने चवंति के वे. जुवनपतिथी मांगीने सहस्रार देवलोकसुधी जघन्य तो एक समयमांहे जो उपजे तो एक, बे, त्रण उपजे तथा चवे. अने उत्कृष्टा संख्याता अथवा श्रसंख्याता उपजे तथा चवे. केमके सहस्रार देवलोक सुधी तिर्यंच पण जाय बे. माटे असंख्याता उपजे ने चवे. अने ए आवमा देवलोकथी उपरना देवता एक समये संख्याता उपजे ने संख्याता चवे; पण असंख्याता नही. केमके त्यां मनुष्यज जाय बें. नेत्यांनो देवता चवे ते पण मनुष्यज थाय बे. तेमाटे ते मनुष्य संख्याताज बे. माटे त्यां संख्याता उपजे ने चवे ॥ १४६ ॥ एटले उपपात तथा चवन संख्याद्वार संपूर्ण युं. ॥ ॥ दवे देवतानी गतिमांहे कोण कोण यावी उपजे ? ते यागति द्वार कहे बे. नर पंचिदिय तिरिया ॥ गुप्पत्ती सुरनवे पजुत्ताणं ॥ जवसाय विसेसा ॥ तेसिं गइ तारतम्मंतु ॥ १४७ ॥ Jain Education International अर्थ - पत्ता के पर्याप्ता नर के० मनुष्य तथा पर्याप्ता पंचेंद्रिय तिर्यच, ए बेसुरनवे के देवतानी गतिमांहे उप्पत्ति के० उपजे ने शेष देवता, नारकी, एकेंद्रिय, विगलेंद्रिय, वली पर्याप्तापंचेंद्री, तिर्यंच, तथा मनुष्य, एटला मांहेलो कोइ जीव मरीने देवता याय नहीं. हवे देवगतिए उपजवानुं विशेषपएं कहे बे; के एक जुवनपति, एक व्यंतर, एक ज्योतषी, एक वैमानिक, तेमांहे पण वली एक शुद्धिवंत, एक महर्द्धिक, एक अल्प रुद्धिवंत, एक महोटा श्रायुष्यवालो, एक थोडा श्रायुष्यवालो - इत्यादिक विशेषनुं कारण पोताना अवसाय विसेसा के० अध्यवसाना विशेषपणाथ की गतिनुं तारतम्यपएं एटले जिन्न निन्नपएं बे. अध्यवसाय शब्दे For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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