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________________ संग्रहणीसूत्र. १ विमाने, एटले स्थान के श्रायुष्यनी जिह के० उत्कृष्ट विइ के० स्थिति ते अनुक्रमे कहे बे.' पहेला बे कल्पे यरादो के० बे सागरोपम, बीजा बे देवलोके सत्त के० सात सागरोपम, त्रीजा बे देवलोके चन्द के० चजद सागरोपम. चोथा बे देवलोके एटले सातमा छाने श्रावमा देवशोंके प्रहारस के० अढार सागरोपम, तथा नवमाथी बारमासुधीना चार देवलोके बावीस के० बावीश सागरोपम तथा नव ग्रैवेयके इगतीस के० एकत्रीश सागरोपम, तथा पांच अनुत्तर विमानने विषे तित्तीसा के० तेत्रीश सागरोपमनी उत्कृष्टी स्थिति बे ॥ १३७ ॥ कि स्थितिमांहेथी बी स्थिति काढीएं तेहने विवर एटले विश्लेषक - हीएं. पी बाकी रहे तेमांथी ताकि के० एकरूप जंबो करीए. ते वली इकारस गाउ पाडीए के छागीयार हस्तगतनागमांहेथी पाडेलाने स्थानके जे सेसा के० बाकी रहेला विकारसजागा के० एक हाथना अगीयारीया जाग तेने देवताना श्रायुमांही अरे रे समहियंमि के० एकएक सागरोपम सम अधिक ययुं यकुं ॥ १३८ ॥ - चयपुत्र शरीरा के० पूर्वपूर्व शरीरप्रमाण मांहेथी कमेण के० अनुक्रमे करी एगुत्तराइवुढीए के० एकोत्तर वृद्धीए अगीयारीया जाग उठा करता जइएं, एवंविई विसेसा के० ए रीते श्रायुष्यनी स्थिति विशेषे कर एटले सागरोपम वृद्धीरूपे करीने सकुमाराइ के० सनत्कुमार यादि देवताना तणुमाणं के० शरीरनुं प्रमाण याय. ते व ते जे पूर्वाचार्योंने देवताना शरीरनुं प्रमाण करवानुं कारण बीजुं कोइ उपनुं नहीं, तेवारे त्र्यायुष्यनुं मान विवरीने सागरोपम उपर देहमान कयुं ॥ १३ ॥ यद्यपि ईशान तथा मांहेद्र देवलोके सागरोपम काकेरां जे श्रायु बे ते जाके हीयां गणai नहीं. सौधर्म तथा ईशाननुं सात हाथ देहमान कयुं. हवे सनत्कुमारेंद्रनुं शरीरमान कहे बे. विवरे एटले विवरण ते विश्लेष करीएं. अर्थात् अधिक स्थितिमांदेथकी बी स्थिति काढीएं. जेम सौधर्मादिक सात स्थानक जे कह्यां, तेनी उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपमादि बे. तेनो विवरण करीएं, एटले विश्लेष करीएं; ते एम के महोटी स्थितिमांथी न्हानी स्थिति काये थके बाकी जे रहे तेमांथी एक उंबो करीएं; पढी एक हाथना अगी चार जाग करीएं, ते जागमांथी विश्लेष करतां एक उंबो करतां जे यांक उगरयो बे; ते प्रमाणे हाथना शेष जाग ते यादे देश एकेक सागरोपमे वधते एकेक जाग घटतो यांक मांडीएं. पूर्व शरीरमानथकी एकेक सागरोपमे वधतां एकेक जाग अनुक्रमे चय के० घटाएं. एम स्थिति विशेष सागरोपम वधता सनत्कुमारादिकने विषे देवना शरीरनुं मान थाय. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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