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संग्रहणीसूत्र.
॥ हवे श्रीजुं देवना शरीरनी अवगाहनानुं द्वार कहे बे. ॥
इसिंह उगाहणादारंजाइ
वणवण जोइ सोदम्मी साणे सत्त दव तणुमाणं ॥ 5 5 5 चटक्के गेवि गुत्तरे हाणि इक्विकं ॥ १३६ ॥
अर्थ - जवनपति तथा व्यंतर तथा ज्योतषी, सौधर्म देवलोक तथा ईशान देवलोक सुधी उत्सेधांगुल प्रमाण सत्तह्बतमाणं के० सात हाथ शरीरनुं मान उत्कृष्टुं जावं. तेवारपठी डु के० त्रीजो अने चोथा ए बे देवलोक, तथा बीजीवार शब्दे पांचमो तथा बठो देवलोक, तथा त्रीजीवार डु शब्दे सातमो तथा आठमो, ने चक्के एटले चतुष्के के० नवमो, दशमो, अगीयारमो, घने बारमो, तथा गेविज के० नव ग्रैवेयक, अणुत्तरे के० अनुत्तर विमाने, ए व ठेकाणे क्रमेकरी हाणि इकिकं के० एक एक हाथ नी हाणी करता जइएं, तेवारे अनुत्तरविमाने एक हाथनुं शरीर याय बे. एटले त्रीजा तथा चोथा देवलोके व हाथ, ब्रह्म ने लांतके पांच हाथ, शुक्र छाने सहस्रारे चार हाथ, आरणादिक चार देवलोके त्रण हाथ, ग्रैवेयके बे हाथ ने अनुत्तर विमाने एक हाथना शरीरनुं मान जावं. ए रीते सामान्यपणे देवताना शरीरनुं मान कयुं ॥ १३६ ॥
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हवे विशेषे सागरोपम आयुष्यनी वृद्धिए करी सनत्कुमारादिकने विषे देहमान कहे ते. ॥
कप्प डुगडु टुडु चनगे || नवगे पणगेय जिवि प्रयरा || दो सत्त चन्द द्वारस || बावीसिगती सतित्तीसा ॥ १३७ ॥ विवरे ताणि कुणे ॥ इक्कारस गाउ पामिए सेसा ॥ दचिक्कारस जागा ॥ यरे प्रयरे समदियंमि ॥ १३८ ॥ चय पुत्र सरीरा || कमेण ईगुत्तराइ बुकीए ॥ एवं हिई विसेसा ॥ सकुमाराइ तणुमाणं ॥ १३० ॥
अर्थ - ए पूर्वोक्त रीते प्रथम कप्पडुग के० पहेला छाने बीजा देवलोके, तथा डु के० त्रीजा ने चोथा देवलोके, तथा डु के पांचमा छाने बहा देवलोके, तथा डुं to सातमा ने श्रावमा देवलोके, थने चउगे के० चार ते नवमे, दशमे, अगीयारमे ने बारमे देवलोके, तथा नवगे के० नव ग्रैवेयके, तथा पगे के० पांच अनुत्तर
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