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संग्रहणीसूत्र. वसे . वली पश्चिम अने उत्तरनी अत्यंतर कृक्षराजीनी वचमां शुक्रान विमाने श्रव्याबाध देवता नवसो देवताना परिवारे वसे . अच्यंतर बाह्य उत्तरदिशिनी कृसराजीनी वचमां सुप्रतिष्टाजविमाने अग्नेयदेव वसे . तेने नवसें देवनो परिवार बे. अने ए समस्त कृलराजीना मध्य नागे रिष्टानविमाने रिष्टालनामे देव बीजा नवसें देवताना परिवार वसे बे. ए नवे विमाने देवतार्नु थायुष्य था सागरोपम . अने ए नवे विमान पांचमा देवलोकने बेडे . ए विमान थकी असंख्याता हजार योजन बेटे लोकांतिक बे. तेवार पड़ी अलोक बे. एटली वात संघयणीना मूलपाठ थकी अधिक वखाणी. ॥ १०७ ॥ ॥ हवे दश वैमानिक इंडोना सामानिक देवता तथा आत्मरक्षकदेवता, कहे .॥
चुलसी असि बावत्तरि ॥ सत्तरि सहीय पन्न चत्ताला ॥तुल्ल
सुर तीस वीसा॥ दससहस्स आय रक चनगुणिया ॥१०॥ अर्थ-तुझसुर मध्यस्थपद दशे स्थानके जोमीएं. त्यां सौधर्मेंना सामानिक देव चोराशी हजार जाणवा, ईशानेजना एंसी हजार, सनत्कुमारजना बहोतेर हजार, माहेंजना सित्तर हजार,ब्रह्मेऽना साठ हजार,लांतकेंना पचास हजार, महाशुक्रंजना चालीश हजार, सहस्रारेंजनात्रीश हजार, आणत प्राणतेजना वीश हजार, थारण श्रच्युतेंडना दश हजार. ए सामानिक देवथकी पायरक के आत्मरक्षक देव ते चनगुणिया के प्रत्येक इंजना चार गुणा होय; तेवारे त्रण लाख ने बत्रीश हजार आत्मरदक देव सौधर्मेजना जाणवा. एम सर्वत्र चोगुणा करवा. ॥ १० ॥
॥ हवे ए सौधर्मादिक बार देवलोकना देवोनां चिन्ह कहे .॥ कप्पेसुय मिय महिसो ॥ वराद सीदाय उगल सालूरा ॥
दय गय जुयंग खग्गी ॥वसदा विडिमाइं चिंधाई॥११॥ अर्थ-कप्पेसुय के देवलोकने विषे सौधर्म देवलोके मिय के मृगर्नु चिन्ह . अने इंशाने महिसो के पामार्नु चिन्ह जे. सनत्कुमारे वराह के सूअरनुं चिन्ह . माहेंडे सीहाय के सिंहनु चिन्ह . ब्रह्मदेवलोके बगल के बोकमार्नु चिन्ह . लांतके सालुरा के देमकानुं चिन्ह . शुक्रे हय के घोडानु चिन्ह . सहस्रारे गय के हाथीन चिन्ह . आणते जुयंग के० सर्पनुं चिन्ह बे, प्राणते खग्गी के गेंडानुं चिन्ह जे. श्रारणे वसहा के वृषन- चिन्ह . अच्युते विडिमाई चिंधाई के मृग विशेष जाति आदे देईने चिन्ह जाणवां. केमके देशी नाममालामांहे विडिमशब्दे मृग कयु , ए चिन्ह सर्व मुकुटनेविषे होय. ए चिन्हे करी देवताना देवलोक उसखाय जे आ देवता अमुक देवलोकनो बे. उववाश् प्रमुख सूत्रे तथा वृत्तिए दशे
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