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________________ संग्रहणीसूत्र. करीएं तेवारे बसो पचीश थाय. तेने ए बेज देवलोकना पोताना तेर प्रतरे गुणीएं तेवारे सौधर्म तथा ईशाननां विमाननी श्रेणीनी सर्वाग्र संख्या ( शए५) थाय. हवे ए बेउ देवलोकनां सर्व मली साउलाख विमान बे; तेमांहेथी (शएश्५) श्रेणीनां विमान काढीएं तेवारे ( एएएJ०७५ ) एटलां पुष्पाव किर्ण विमानो पबवाडे रहे. ए रीते आगला देवलोके पण विचारणा करवी. ए रीते मुख, नूमि तथा समा. सादि करणना उपाय जाणवा. ॥ १०३ ॥ ॥ हवे कीया देवलोके, कीया प्रतरे, केई पंक्तिए, केटलां त्रिखूणां विमान, केटलां चन. खूणां, केटलां वाटलां विमान होय ? तेनी संख्या करवा सारु उपाय कहे . ॥ गदिसि पंति विमाणा॥ तिविनत्ता तंस चनरंसा वहा ॥ तंसेसु सेस मेगं ॥ खिवसेस उगस्स शकिकं ॥ १०४॥ तंसेसु चरंसेसुय तो रासि तिगंपि चनगुणं कान ॥ वहेसु इंदयं खिव ॥ पयरधणं मीलियं कप्पे ॥ १०५॥ श्रर्थ-वांच्या देवलोके वांज्या प्रतरनी एक दिशिनी पंक्तिनां जेटलां विमान होय तेने तिविजत्ता के त्रण नागे वहेंचीएं, तेवारे अनुक्रमे तंस के त्रिखूणां, यने चउरंसा के चारखूणां, तथा वहा के० वाटलां एवा त्रण नाग थाय. ए रीते करता सेसमेगं के शेष जो एक वधे तो तंस के० त्रिखूणांमांहे खिवसेस के नेलीएं, अने जो पुगस्स के बे वधे तो शकिकं के एकेको नेलीएं ॥ १०४ ॥ एटले एक त्रिखूणामांदे नेलीएं, अने बीजो चारखूणामांहे नेलीएं, तेवारे एक दिशिनां त्रि. खूणां, चारखूणां, अने वाटलां विमाननी संख्या थाय. तो के तेवार पबी ए रासितिगंपि के त्रण राशी मांदेली एकेकी राशीने प्रत्येके चगुणं काउ के चारगुणां करीने पढी वट्टेसु के वाटलां विमानमांहे इंदयंखिव के एक इंधक विमान नाखीएं, तेवारे वांबित पयर के प्रतरने विषे धणं के० त्रिखूणां, चोखूणां अने वाटलां विमान-तेउनी संख्या थाय. सर्व प्रतरतुं धन तेर श्रादि प्रतरनी विमान संख्याने एकठी मिलियं के मेलवीएं तेवारे कप्पे के० सौधर्म ईशानादिक वांडीत देवलोके सर्व धन होय. सर्व विमानोनी संख्या थायः ॥ १०५॥ उदाहरण-जेम सौधर्म तथा ईशान देवलोकना पेहेला प्रतरे एकदिशिए बासठ विमान बे. ते त्रण नागे वहेंचीएं, तेवारे एकेका जागे वीश वीश आवे; बाकी बे वधे, तेमांहेलो एक त्रिखूणामांहे नेलीएं, बीजो चौखूणामांहे नेलीएं तेवारे एकवीश त्रिखूणां थाय, एकवीश चोखूणां थाय अने वीश वाटलां थाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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