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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. ६११ अर्थः-थंबड परिव्राजक पोतेज बोलेले अंबडस्सणं के अंबडने, णो कप्पा के न कल्पे, अन्ननलिएवा के अन्य तीर्थीप्रत्ये तथा अन्ननडि देवयाणिवा के० वा अथवा अन्य तीर्थीना देवप्रत्ये, तथा अमानबिय परिग्गहियाई अरिहंत चेश्यावाके वा अथवा अन्य तीर्थी परिग्रहीत के अन्य तीर्थीए ग्रयां एवां अरिहंतनां चैत्य जे जिनप्रतिमा ते प्रत्ये; एटले ए नाव जे अरिहंतनी प्रतिमा होय, ते अन्यतीर्थीए पोतापणे ग्रही होय ते प्र त्ये गुं न कल्पे? ते कहेले. वंदित्तएवाके वंदना स्तवना करवी, तथा नमंसित्तएवा के नमस्कार करवो, नन्नबके० एह विना, अरिहंतेवाके अरिहंत तथा अरिहं तचेश्याणिवाके० अरिहंतनी प्रतिमा: एटले ए बेचने वंदना नमस्कार करूं: पण प्रर्वेकह्यां तेमने न करूं. तिनाव.ए अंबडनो अधिकार कह्यो. वली एज प्रमाणे तेना सातसें शिष्योनो अधिकार जाणवो. ते कहिए बैए. तेणंपरिवायगाके ते परिव्राजक, बदुई जत्ताए अणसणाई दित्ताके घणा नात अणशणे दीने, बालोश्य पडिकंताके बालो पडिकमीने, समाहिपत्ता के समाधि पाम्या थ का, कालमासे कालंकिच्चा के काल अवसरे काल करीने, बंनलोएकप्पे के पांचमा ब्रह्मदेवलोकनेविषे, देवत्ताए उववन्ना के देवतापणे सघलाए उपन्या. तेहिं के ते देवलोकनेविषे तेसिंके० ते देवताउनी, दससागरोवमावि के दशसागरो पमनी स्थिति ले. परलोगस्त धाराहगा के० परलोकना सहुए आराधक . से संतंचेव के शेष बीजो सर्व पात अंबडनी परे कहेवो.॥२॥ हवे ते मूर्खलोक, चैत्य शब्दनो अर्थ फेरवे . ते उपर आगली गाथा कहेले. चैत्य शब्दतणो अरथ ते॥प्रतिमा नदि कोइ बीजोरेजे द देखी गुण चिंतिए ॥ तेहज चैत्य पतीजोरे ॥शा॥३॥ अर्थः-चैत्य शब्दनो अर्थ ते प्रतिमा बे, पण नही कोई बीजो के बीजो को अर्थ नथी. चैत्यंजिनौकस्त द्विवं ॥ इति अनेकार्थसंग्रहवचनात्. वली धाव श्यक चूर्णिमध्ये पण कडं जे जे॥ सबलोए सिक्षा अरिहंतं चेश्याई तेसिचेव प डिमा चिनिसंझाने संज्ञानमुत्पाद्यते काष्टकर्मादिषु प्रतिदृष्ट्वा ॥ चैत्य शब्दनो ज्ञान एवो अर्थ कोइपण ठेकाणे नथी. नहीतर॥केवल वरना दंसण समुपसईएहवा पाठ सिक्षांतमांबे. तेम॥केवल वर चेश्य इंसाएवो पात पण होत-तथा जेह देखी गुण चिंतीए के जे देखीने गुण ते परमात्माना गुण अथवा पोताना ज्ञानादिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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