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________________ ६०६ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. वरामएस गोलवट्ट समुगाए बहुइयो जिसकदाउ सन्निरिकत्ता चित्ति जा उणं चमरस्त प्रसुरिंदस्स असुरकुमाररमो अन्नेसिंच बहूणं असुरकुमाराणां देवा पं देवीय क्षणिकाउ वंद सिकाउ नमसलिकान पुर्याणिका सक्कारणिकान सम्मापिका कल्लाणं मंगलं देवर्य चेश्यं पशुवास विकाउ नवंति सेतेय हेल 0 st एवं च पोपनूजाव विहरित्तए पनूणं नंत्ते चमरे सुरिंदे असुरराया चमर चंचाए रायहाणीए सजाए सुहम्माए चमरंसि सिहासांसि चनसहिए सामालिय साहस्सीहिं तायत्तीसाए जाव अहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिय सिद्धिं संप रिवुडे महया हयन जाव गुंजमाणे विहतिए हंता केवलपरियारिडीए नोचेवणं मेदुणवत्तियाए ॥ व्याख्या ० चमरेणं नंतेके 0 हेनगवन्, चमरो, सुरिंदे के सुरदेवनो इंद, सुरकुमाररायाके० असुरकुमारनो राजा, चमरचंचाए रायहाणी एके० चमर चंचानामे राजधानीने विषे, सजाए सुदुम्माएके सुधर्मानामा समानेविषे, चमरंसि सिहास सिके० चमरनामना सिंहासनने विषे रह्यो तुमिएसके तुटित जे इं झीनो समुह ते साथे, दिवा के० देवसंबंधी, जोगा के० जोग, गुंजमाणे के० नो raat aat, विहरितएके० विचरे. प्रभुजी कहे. यो इहे समठेके० ए अर्थ स मर्थ नही. एटजे जोग न जोगवे; सेकेए हेरांनंते एवं वुञ्चश्के० हे नगवन्, शामाटे एम कहो ? गोपजाव विहरित ए के ० न समर्थ जोग जोगवतो विचरवाने. एम पूढे ० ० ० के जगवान कहेले. हे गोयम. चमरस्सणं असुरिंदस्स असुर कुमाररन्नोके० चमरो प्रसुरें असुरकुमार राजानी, चमरचंचाए रायहाणीएके० चमरचंचा राजधानीमां, स नए सुहम्मा के सुधर्मासनाने विषे, मालवए चेश्यखंनेके० माणवकनामा चैत्यस्थं नेविषे व राम सुके वज्रमयी, गोलवट्ट समुगएसुके० घणा गोल काबडावे. तेह नेविषे, जिसक हाके० जिनेश्वरनी दाढायो, सन्निरिकत्ता चि ंतिके० थापीय की. जा के जे दाढायो, चमरस्स सुरिंदस्स सुरकुमाररन्नोके चमरो, सुरें, सुरकुमार राजाने तथा श्रन्ने सिंच के० बीजापण देवताने, बहुएं सुर कुमाराके घणा घसुरकुमार देवाणंके देवताने, देवीायके० देवीउने, यच्चणिकानके० अर्चवा योग्यले. वंद णिजानके० वांदवा योग्य. समंसलिकान ho नमस्कार करवा योग्यते. पूयािन के पूजवा योग्यले. सक्कार पिकानं के० सत्कार करवायोग्यले सम्माणसिकाउ के० सन्मान करवा योग्यले. कल्लाणं मंग लंके० कल्याणकारी, मंगलकारी. देवर्य चेश्यके ० देवताना चैत्यनी परे. पर्ूवास पिकाके० सेवा करवायोग्य, नवंसिके० बे. सेतेषां को एवं वुच्च के ० ७ हे Jain Education International ס ס For Private & Personal Use Only ס www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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