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________________ ६०४ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. अर्थः-नक्ति के कोक देवता नक्ति जाणी लेने. जीत के थपरदेवता पो| तानो जीतव्यवहार जाणीले बे. धर्मे करी के० कोश्क धर्मे करी लेता हवा: एटले धर्म जाणी लेता हवा. लीए के एटले प्रकारे ले. दाढ के दाढा, अवर के वली बीजा देवता, जिनअंगके हाड दंत प्रमुख ले. तेवार पनी सुर के ० देव ता, त्रण यूंन, रचे के करे, कहे जंबूपन्नत्तीके जंबूदीप पन्नत्ती एम कहेले. या यांत ग्रहणे मध्यग्रहणमिति न्यायात्. जंबूपन्नत्ती शब्दे जंबूदीपपन्नत्ती खेए, एट ले जंबूदीपपन्नत्तीमध्ये एम कहे . चंग के मनोहर. इतिः तथाच तत्पातः ॥तएणं सक्के देविंदे देवराया उवरिघ्नं दाहिणं सकह गिएह ईसाणे देविंदे देवराया नवरिघ्नं वामं सकहं गिएह चमरे असुरिंदे असुरराया हिहिनं दाहिणं सकहं गि एह बली वश्रोयणिंदे वश्रोयणराया हिहिनं वामं सकहं गिएह अवसेसा नव गवई जाव वेमाणियादेवा जहारिहं अवसेसाई अंगमंगाई गिएहर के जिणन तिए केई जीयमेयंति कह केई धम्मोत्ति कटु गिएहति तएणं सक्के देविंदे देवराया नवणवा जाव वेमाणियादेवा एवंवयासी खिप्पामेव नोदेवाएप्पिया सत्वरयणाम ए महश्महालए तनचेश्य थूने करेह एग नगवतोतिबगरस्स एगं गणहराणं एगंधव सेसाणं अणगाराणां तएणं बहवे जाव करेत्ति तएणं तेबहवेनवणवश्जाव वेमाणिया देवा तिबगरस्त परिनिवाण महिमं करंति जेणेव एंदीसरेदीवे तेणेव उवागवंति॥व्या ख्या-तएणं सक्केदेविंदे देवराया के तेवारे शक देवें। देवतानो राजा, उवरिहनं दाहि णं के जमणी नपरली, सकहं के दाढा, गिगहई के ग्रहे, ईशाणे देविंदे देवरा याके० ईशान देवेंइ देवतानो राजा, नवरिन्नं वामं सकहं गिएह के माबी कप रनी दाढा लीए. चमरे असुरींदे असुराया के चमर असुरकुमारनो इंश, असुर कुमारनो राजा, हिछिन्नं दाहिणं सकहिं गितहश्के जमणी हेली दाढा लीए. ब ली वश्रोयणिंदे वझरोयणरायाके० बली नामा वैरोचन देवनो इंश वैरोचनराजा, हिहिनं वामं सकहं गिएहश्के माबी देवली दाढा लीए.अवसेसा के बीजा शेष, नवणवा जाव वेमाणियादेवा के नवनपति यावत् वैमानिकदेवता. जहारिहं के जेम जेने योग्य होय ते, अवसेसाई के शेष थाकतां, अंगमंगाई गिएक के अंगोपांग लीए, के जिणनत्तीए के कोक देवता जिननी नक्ति जागी लीए केश जिय मेयंति कटुके को जीतषाचार; एम करीने सोए, केश धम्मोति कट्ठ गिएहश्के कोक धर्म के एम करीने सीए. तएणं सक्के देविंदे देवरायाके० तेवार पनी शक देवेंड देवराजा, नवणव जाव वेमाणियादेवा एवं वयासी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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