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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. यूए अर्थः-तेवारी फूलपगर के० फूलना ढगला, बागल करी, खालेखे मंगल श्राव के ० अष्ट मंगलीक ते प्रालेखे. यथा स्वस्तिक १ श्रीवत्स २ कलश ३ नासन ४ शराव संपुट ५ मत्सयुग्म ६ दर्पण ७ नंदावर्त ८ एवं अष्ट मंगल, धूप देश के ० अनेक जातीना धूप देईने, काव्यस्तवीके तेवार पढी पुनरुक्त एकसो या काव्ये स्तवने, करे शस्तवनो पाठके० बेहेली वारे नमोबुनो पाठ कहे. इति गाथार्थ. 0 ए वली सूत्र प्रमाणे गाया बांधी. तथाच तत्सूत्रं ॥ तएवं से सूरियानेदेवे पोलयर यां गिरह पोउयरयां गिरिहइत्ता पोउयरयां विहडित्ति विहडितित्ता पोडयरय वाइवाइत्ता धम्मियं ववसायं गिएहइ गिराह इत्ता पोउयरयणं पडिनिस्कवेइ पडि निरकवेत्ता सीहासा नु इत्ता ववसाइ सनाउ पुरिमबि लेणं दारेणं प डिनिखमइ पडिनिकमत्ता जेणेव णंदापुरकरणी तेणेव नवागs जागवत्ता हब पायं परकालेश्त्ता याचंते चोरके सूश्नूए एगं महं सेयं रययामयं विमल सलिल पुनं निंगारं गिरा गिराहेइत्ता जाईतब उप्पलाइ जावसय सहस्स पत्ताई ताई गिरह गिराह इत्ता जेणेव सिद्धायतो तेणेव पहारेउगमलाए तएवं सूरियानं देवं बहवे निगिया देवाय देवीउय अप्पेगइया कलस हब गया जाव अप्पेगइया धूवक डुबय बगया सूरियानं देवं पिछन समणु गति गतित्ता तएवं सूरियानेदेवे चहिं सामाणि साहसीहिं जाव खन्नेहिं देवेहिं देवी हिंय सर्विस परिवुमे सङ्घबजे हिं जाव वा रवे जेणेव सिद्धायतले तेणेव नवागम्बर नवागवत्ता सिद्धायत पुरिमे दारेणुपविस पविसइत्ता जेणेव देवबंद ए जेणेव हयं जिएपडि मान तेणेव नवागच नवागन्नुइत्ता जिणपडिमा खालोए पणामं करेइ करेइत्ता लो महय गएह गित्ता लोमहवेणं परामुस परामुसता गंधोद एवं एहावे‍ एहावेत्ता गोसीसचंद णे णं गायाई अतुलिंपर पुलिंपइत्ता जिप डिमाणं हवाई देवदूत जुलाई नियंसेइ नियंसेइत्ता पुप्फारुणं १ मल्लारुहणं श्चुम्मारूपं ३ वडा रुह प्रारणारुणं । करेइ करेइत्ता यासतो उसत्त बिचल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम कलाव करे करेत्ता करयल पडिग्गदियं करयल पसह विप्प मुक्केणं दसवणं कुसु मे मुक्क पुष्फ पुंजो वार कलियं करेइ करेइत्ता जिएलपडिमा पुरन विहिं समे हिं रामहिं राहिं तंडुलेहिं ग्रह मंगले प्रालिहर तंजहा सहिय जाव दप्प णं तयाणं तरकणं चंदप्पनरयण वयर वरुलिय विमलदमं कंचण मणिरयण नत्तिचि तं कालागुरु पवर कुंडरुक्क तुरुक्क मसंत धूवमघमवंत गंधुधुत्रानिरामं गंधवहिं वि वेरुनियमय करुबुयं पग्गहिकणं धूवंदाऊण जिवराणं असयं विसुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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