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________________ नववैराग्यशतक. नए पीने हे गौतम! प्रमाद न करवो. निरंतर धर्मनेबिषे उद्यम करवो एम नगवान कदे. संबुद्यद किंन बुद्यदा, संबोदी खलु पेच्च उल्लदा ॥ नोर्बु वणमंतिराश्न, नो सुलहं पुणरावि जीवियं ॥ ३ ॥ महरा वुढाय पासह, गनबा वि चयंति माणवा ॥ सेणे जद वयं हरे, एवं आनरकयं मि तुदृ ॥ ४ ॥ व्याख्या-यहो नव्यजीवो! तमे संबुजाहके बुजो. सम्यक्त्व रत्न पामो. केम प्रति बोध पामता नथी? केमके परनवनेविषे बोधिबीज तेलुके निश्चये दोहली ने. वारंवार समकित न पामीए. जे रात्री अने दिवस गयां ते फरीने न आवे. वली वारंवार संयम चारित्र सहित जीवितव्य तेपण पाम, सुजन नथी. तेमाटे धर्म पामी प्रमाद न करो. ॥७३॥ हे जीव! तुं जो तो खरो के, महराके० बालको तथा वृक्ष बने गर्नने विषे रह्या एवा जे मनुष्यो ते पण चवे एटले मरण पामे, त्यां का बल चाले नही. सिंचाणो जेम वट्टयके वर्तक एटले चिमकली तथा तेतरने हेरीले जाय तेम थायुष्यनो अंत थावे थके घायुष्यपण तूटे. त्यारे जीव मरण पामे.॥७॥ तिद्वंयण जणं मरंतं, दहण नियंति जे न अप्पाणं॥विरमंति न पावा आधिची धितणं ताणं॥ ५ ॥ मामाज पद बदुअं, जे बघा चिक्क रोहिं कम्मेदि॥ सबेसि तेसि जाय॥ दिवएसो मदादोसो ॥ ७ ॥ व्याख्या-स्वर्ग, मृत्यु धने पाताल-ए तिद्वंयण के त्रणे लोकना जनने मर ता देखीने पण जे मनुष्य पोताना आत्माने नथी संवरता, अने पाप कर्मथी विरमता के उसरता नथी, तेना धीठापणाने धिक्क धिक्क . तेना जेवो कोई मूर्ख नथी. ॥ ७५ ॥ इहां शिष्य गुरुने कहे जे के. मामा जंपह बहुथं के घणो उपदेश न थापो; अर्थात् घणुं घणुं न बोलो. केमके जे नव्यजीवो, चीकणा के कठण एवांजे यात कर्मो तेमना,बंधने करी बंधायाने,ते सघला जीवोने,हितकारी एवो जे उपदेश अर्थात् धर्मना मार्गनो उपदेश,ते महोटो दोषरूप थ परिणमे .॥ कुणसि ममत्तं धण सयण विदव पमुहे सुपंत उरकेसु॥सिढिलेसि आयरंपुण, अपंत सुरकं मिमुकंमि॥॥संसारोउदहेन, उरकफ लो सह उरकरूवोयानचयंति तंपिजीवा,अश्वचा नेह निअलेहिं न व्याख्या-अपंतपुरकसु के अनंतु जे फुःख जेनेविषे एवा जे धन के इव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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