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________________ ០១ शोननकृतजिनस्तुति. यमलमदारेः-नाना के नाना प्रकारना जे घामय के रोग अने मल के या त कर्मरूप मल, तद्रूपी जे अरी के शत्रु तेनो सदा के निरंतर नाश करनार, अने दीनानां के दीनपुरुषोने माटे सदानः के दीदासमये दानसहित एवो अने अलमदारेरिततमः-अलम के० अतिशये करीने दार के० स्त्रीए ईरिततः के जेना धैर्यपणानुं चलन कयुं नथी; एवो . ॥ ५॥ जलव्यालव्याघ्रज्वलनगजरुक्बंधनयुधो ॥ गुरुर्वाहोऽपा तापदघनगरीयानसुमतः॥कृतांतस्त्रासीष्टस्फुटविकटदेतुप्रमि तिना ॥ गुरुर्वाऽहोपातापदघनगरीयानसुमतः ॥ ३ ॥ व्याख्या-हे नव्यजनो! अपातापदघनगरीयानसुमतः-एटले नथी पात के अधःपात, अपत् के० थापदा, अने अघ के पाप जेनेविषे, एवी जे नग |री के मोदरूप नगरी, तेनेविषे जे यानके गमन, तेविषे सुमतः के अत्यंत मान्य एवा, वाहः के अश्वसरखो गुरुः के० मोहोटो, अने स्फुटविकटहेतुप्र मितनाक्-स्फूट के स्पष्ट एवा विकट के परस्पर मलनारां जे प्रमाण, तेनो जे हेतु के साधकदृष्टांत, अने प्रमिति के उत्कृष्ठज्ञान, तेने नजन करनारो ए टले तेणेकरी युक्त एवो, अने गुरु के विस्तीर्ण अने पदघनगरीयान-पद के अधिकार, तेउए करीने घनके निविड होवाथी गरीयान् के श्रेष्ठतर अने पाता के रक्षण करनारो जे कृतांत के सिद्धांत ते असुमतः के प्राणीने जल, व्यास व्याघ्र, ज्वलन गज रुग्बंधनयुधः के० पाणी सर्प वाघ दावानल उष्टगज नगंद, रादिक पुष्टरोग कारागृहादिकबंधन अने संग्राम-एनथी त्रासीष्ट के रक्षण करो विपदव्यूदंवोदलयतुगदादावलिधरा ॥ समानालीकालीवि शदचलनानालिकबरं ॥ समध्यासीनांजोनृतघननिनांनोधि तनया ॥ समानालीकालीविशदचलनानालिकबरं ॥ ४ ॥ व्याख्या-हे नव्यजनो, गदादावलिधरा-गदा के गदानामे आयुध अने अ ॥ दावलि के जपमाला तेने धरा के० धारण करनारी थने असमा के० असा धारण थने नालिकाऽतीविशदचलना-नाली के कमल तेउनी जे आली के० श्रेणी तेना सरखा विशद के उज्वल बे चलन के चरण जेना एवी, अने विशदचलनानालिकवरं-विशत् के लीन थनारा अने अचल के निश्चल एवा | जे नानाति के घणा चमर, तेनए करीने मिश्रवर्ण एवा नातिकवरं के श्रेष्ठ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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