________________
ଏ୯E
शोननकृतजिनस्तुति. जीममदानवाब्धिनवनीतिविनेदिपरास्तविस्फुरत् ॥ परमतमोहमानमतनूनमलंघनमघवतेऽदितं । जिन पतिमतमपारमामरनिर्टतिशर्मकारणं ॥ परमत
मोदमानमतनूनमलंघनमघवतेऽदितं ॥ ३ ॥ व्याख्या-हेनव्यजनो! तमे जिनपतिमतं के श्रीजिनेश्वरना मतने नूनं के० निश्चये करीने थानमतके वंदन करो. ते जिनमत के जे? तो के-नीममहा नवाब्धि नवनीतिविनेदि-नीम के नयंकर एवो जे महानवाब्धिके महोटो नवसमुश्,तेथी अपनी जे नवनीति के जन्म मरणादिकनय, तेनु विनेदिके० नेदन करनालं, थ ने परास्तविस्फुरत्परमतमोहमानं-परास्त के निराकरण कस्यां बे, विस्फुरत् के० प्रगट एवा परमत के शाक्यादिक मिथ्यात्वमतनां मोह के अज्ञान थने मान के अहंकार जेणे एवं, अने अतनून के महोटुं,धने अलंके अत्यंत, घनके० निविड गहन एवं, थने अघवते के पापी पुरूषमाटे अहितं के अहितकारक ए बु, अने अपारमामरनिर्वृतिशर्मकारणं अपार के अनंतले अने मर्त्य के मनुष्य बने अमर के देव, तेउनुंजे निर्वति के मोक्षसंख, तेनुं कारण के नि मित्त एवं, अने परमतमोहं-परम के उत्कृष्ट एवं जे तमके अज्ञान तेनो नाश करनारु एबु,थने अलंघनमघवता-अलंघनके कोइ पण उनघन करवामाटे अशक्य एवो जे मघवा के अच्युतेइ, तेणे इहितंके श्रवण करवानी इवा करेलुं एवंडे.
याऽत्रविचित्रवर्णविनतात्मजएष्ठमधिष्ठिताद्वता ॥ त्समतनुनागविकृतधीरसमदवैरिवधामदारिनिः॥ तडिदिवनातिसांध्यघनमूईनिचक्रधरास्तुसामुदे॥
समतनुनागविकृतधीरसमदवैरिवधामहारिनिः॥४॥ व्याख्या-यत्र के था जगत्ने विषे असमदवैरिव-असम के निरूपम एवो दवैरिव के दावानलज जाणे होयना ! एवा अने धामहारिनिःके पोताना तेजे करीने मनोहर एवा महारिनिः के मोटा चक्रायुधोए करीने गविके० नूमिनेविषे रुतधीरसमदधैरिवधा-कृतके ० कस्योडे,धीरके धैर्यवान बने समदके मद सहित एवा शत्रुनो वध जेणे एवी माटेज चक्रधरा के० चक्रधरा नामे करीने प्रसिदए वी याके० जे अधिष्ठायक देवी, सांध्यघनमूर्धनि के संध्याकाल संबंधी मेघना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org