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शोजनकृतजिनस्तुति.
के धारण कयां , पवि के वज फल के नालीएरादिक फलो, अदाली के रुादनी जपमाला अने घंटा जेणे एवी, करैः के० चार हाथोए युक्त ने. अने अाधिपंकजराजिनिः-अर्ति के शरीरपीडा, आधि के मानसीव्यथा, तद्रूप पंक के कर्दम, जरा के वृक्षपषु अने आजि के संग्राम-एणे करीने अपरीदितां के अदूषित एवा अने माधिपं के राजा सरखा पुरुष उपर अध्यासीनां के थारूढ थनारी अने काली के नीलवर्ण एवी निजतनुलतां के पोतानी तनुवनी ने दधती के धारण करनारी एवी जे. अने कतबोधितप्रजयतिमहा-बोधित के चारित्रना उपदेशे करीने बोध करेली के प्रजा जेणे, एवा जे यति के साधु उने जे महके उत्साह ते कतके कस्योडे जेणे एवी ॥४॥इति श्रेयांसजिन स्तुति. अवतरणः-हवे श्री वासुपूज्य नामे जिननाथनी स्तुति स्रग्धरावृत्ते करीने कहे.
पूज्यश्रीवासुपूज्याऽजिनजिनपतेनूतनादित्यकांतेऽ॥ मायासंसारवासावनवरतरसालीनवालानबाहो ॥आ नम्रात्रायतांश्रीप्रनवनवनयाबिभ्रतीनक्तिनाजा॥मा
यासंसारवासावनवरतरसालीनवालानबाऽहो ॥१॥ व्याख्याः- अहो श्रीवासुपूज्य के हे श्रीवासुपूज्यनामे जिननाथ, तें नक्तिना जां के नक्तिमान पुरुषनी असोके प्रत्यद जे ा ाली के श्रेणी तेनु, श्रीप्र नवनवनयात्- श्री के लक्ष्मी तेनाथी बे प्रनव के नत्पत्ति जेनी--एवोजे काम देव, तेथी नव के उत्पन्न एवोजे जय-तेनाथी अथवा बीजो अर्थ-हे श्रीप्रनव के हेलक्ष्मीना उत्पत्तिस्थान, नवनयात् के० संसारजयथी तरसा के शीघ्र, त्रा यतां के रद करवं. तुंकेवो? तोके- (संबोधने करी कहे) पूज्य के त्रिनुवनने पूजन करवामाटे योग्य एवा हे पूज्य! अजिन के० पापरहित जे पुरू प, तेमनो पति, एवाहे अजिनपते ! नूतन के उदय पामनारो एवो नवीन जे आदित्य के सूर्य- तेना सरखी जेनी कांति एवा हे नूतनादित्यकांते! माया के कपट, तेणे रहित एवा हे अमाय! जेने संसारनेविषे वास नथी एवाहे य संसारवास! नयथी रक्षण करनारा एवाहे अवन! अने हे वर के श्रेष्ट एवो तुं. अने नक्तिमान पुरूषोनीश्रेणी केवी ? तोके-आयासं के प्रयासने विनती के धारणकरनारी अने सारवा के० प्रारंन कस्यो स्तुतिनो जेणे एटले सारव के शब्दसहित एवी, बने अनवरत के निरंतर-रसालीनवाला-रसा के पृथ्वी, तेने
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