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________________ शोभनकृत जिनस्तुतिः งงง ० स्तार- ते करोने गे के० पर्वत सरखा, धने तनुमद वने-अतनु के० घणुं वनारंबे, मदवन के० मदोदक जेनुं एवी, अने शशधरकर श्वेतनासि - शशधर के० चंडमा - तेनां जे, कर के किरण, तेना सरखी श्वेत के० शुत्रबे, नाके० कां ति जेनी एवी, ने अंतिमत्ते के० अतिशये करीने मत्त एवा दिपेंड़े के० गजें इने विषे, अध्यारूढे के० श्रारूढ यनारी हे वज्रांकुशिके० वज्रांकुशि नामे अधि टायक देवि! हेमतारा के सुवर्णसरखी नज्वल, घने अंकुश कुलिशनृत्के ० अंकुश ने वज्र, एकने धारण करनारी त्वके तुं तनुमदवने - तनुमान के ० प्राणी, तेजना वने के० रक्षणमाटे प्रयत्न के० उद्योगने; विधत्स्वं के० कर. ॥ ४ ॥ इति चंड्न जिनस्तुतिः संपूर्णा ॥ ३२ ॥ ० ० अवतरणः - हवे सुविधिनाथनी स्तुति उपजातिवृत्ते करीने कहे. तवा निवृधिसुविधिर्विधेयात् समासुरालीनतपादयावन् ॥ यो योगिपंक्त्याप्रणतोननः सत् समासुरालीनतपादयावन् ॥ १ ॥ ० ० व्याख्या - हे दयावन के० हे दयायुक्त एवा नव्यजन ! यः के० जे सुविधिना थ, व्यवन् के लोकोने रक्षण करनार घने, ननःसत्सना सुरालीनतपादयाननःसत् के देव, तेनी जे सना, घने घसुराली के० असुरश्रेणी, एउए नतके । वंदन का लेपादके चरण जेना, एवी योगिपंक्त्या के ० योगीं पुरुषोनी श्रेणीए प्रणतः क० निवंदन करेला, घने नासुरालीनतपाः - नासुर के दैदीप्यमान एवं खालीन के० स्वीकायुं बे, तप जेणे, एवा सः सुविधिः के० ते सुविधिनाथ; तवके० तारी, निवृद्धिं के० धनादिकनी वृद्धिने, विधेयात् के० उत्पन्न करो ॥ ११ ॥ याजंतुजातायदितानिराजी साराजिनानामलपद्ममालं ॥ ० दिश्यान्मुदपादयुगंदधाना साराजिनानामलपद्ममालं ॥ २ ॥ ० व्याख्या - या के० जे, सारा के श्रेष्ठ एवी, जिनानां के जिनोनी, राजी के० पंक्ति, जंतुजाताय के० प्राणीचना समूहनेमाटे, हितानि के हितकारक एवा साधनाने लपके० कथन करती हवी. घने राजिनानामलपद्ममालं- राजिके ० शोजायमान एवी जे नाना प्रकारनां खमल के० स्वच्छ एवां पद्म के० कमलो, ते नी बेमाला जेनेविषे एवा, पादयुगं के० चरणयुगुलने दधाना के० धारण कर नारी, लाके० ते जिनश्रेणी, मम के० मने, प्रलं के० अत्यंत, मुदं के० हर्षने दिश्यात् के० समर्पण करो ॥ २ ॥ Jain Education International १९८ ם For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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