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________________ 99€ - शोननकृतजिनस्तुति. जिनोनी, राजिके जे श्रेणीहो यात्के जयवंत, याके जे जिनश्रेणी, नव्योद धृत्याके० नव्यप्राणीनो संसारथी नदार करवो, ए हेतुए नूविके नूमिनेविषे, जयदंके जयने देनारा एवा अवतारने कृतवती के धारण करनारी होती थकी दावतारके० दावानल सरखं दैदीप्यमान थने अमितरुक् के जेनी महाकांति, एबुं अने रविंके० सूर्यने रंजयत् के अनुरक्त करनारूं एवा देवोए करेला धर्म चक्रने अवहत्के० धारण करती हवी. ते जिनश्रेणी जययुक्त हो. एवो अर्थ.॥२॥ सिद्धांतःस्तादहितहतयेख्यापययंजिनेंः ॥ सजाजीवःसकवि धिषणापादनेकोपमानः ॥ ददःसादाबवणचुलकर्यचमोदा विहायः ॥ सजाजीवःसकविधिषणापादनेकोपमान ॥ ३ ॥ व्याख्या-साजीवः-सत्के मुख्य बे, राजीव के सुवर्णकमल जेनुं एवा अने, कविधिषणापादने-कविके० पंमित, तेने जे धिषणापादन के बुद्धि नुं संपादन, तेविषे दक्षःके चतुर अने अकोपमानः के क्रोध अने मान, एनएरहित, एवा जिने के० जिनेश्वरनगवान, यं के जे सिमांतने याख्या पयत् के० करता हवा, अने सकविधिषणा-कवि के शुक्राचार्य भने धिषण के वृहस्पति-ए-ए सहित एवी, विहायःसाजी-विहायस् के स्वर्ग-तेनेवि षे सत् के वास करनारा जे देवो, तेउनी राजीके० श्रेणी, ते श्रवणचुलकैः के० कर्णरूप अंजलीए सादात् के प्रत्यद, यंके जे लिहांतने, मोदात् के हर्षेकरीने अपात् के० प्राशनकरतीहवी; एवा अनेकोपमानः-अनेक के० समुश्चं सादिक ने अनेक उपमान जेने एवो ससिमांतके ते जिनलिकांत, वःके तमारा अहितहतये के कर्मरूप शत्रुनो नाश करवा माटे, स्तात् के हो. ॥ ३ ॥ वजांकुश्यंकुशकुलिशनृत्त्वं विधत्स्वप्रयत्नं ॥स्वायत्यागेतनु मदवनेदमतारातिमत्ते ॥ अध्यारूढेशशधरकरश्वेतनासि विझे ॥ स्वायत्यागेतनुमदवनेदेमतारातिमत्ते ॥४॥ व्याख्या-अमत के अमान्य , अरातिमत्ता के शत्रुपणु जेने, अर्थात् शत्रुबुझिनो त्याग करावीने सहदि उत्पन्न करावनारी एवी हे अमतारातिमत्तेअने सुके० उत्तम प्रकारना, बायके अर्थागमरूप लान अने त्याग के दान जेने, एवी हे स्वायत्यागे! अने स्वायत्यागे- स्वके पोतानी जे थायति के वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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