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________________ ७७० शोजनकृतजिनस्तुति. ने सुमतः के अत्यंत मान्य जे एमाटे तुं जिनराजिके जिनेश्वर विषे अतनुनके स्वल्पपणाथी रहित एवं मोटुं जे मतं के चारित्रादिक विषयक मत, तेने नूनं के निश्चये करी स्मर के ध्यान कर. ते जिनराज केवा के ? तोके-मतिमति | के गर्नवासादिक अवस्थानेविषे पण अतिशय बुदिए युक्त अर्थात् त्रण ज्ञाने युक्त एवा, अने नराहितेहिते-नर के मनुष्य, तेनुं आहित के संपादन कयुं बे, हित के वांबित जेणे, एवा अने रुचितरुचि-रुचित के० सर्व जनोने या नंदकारक एटले गमनारी जे. रुक्के कांति जेनी एवा, अने तमोहेकेन्यज्ञाननो नाश करनारा, अने अमोहेके मोहरहित एवा बे. एवं जिनेश्वरविषे जे मत-तेनो स्वीकार कस्यो बतां तारुं पण अज्ञान जशे. ए माटे तुं ते मतनुं चिंतन कर.॥३॥ नगदाऽमानगदामामहोमहोराजिराजितरसातरसा॥ घनघनकालीकालीबताबतादूनदूनसत्रासत्रा ॥४॥ व्याख्या-अहो!! (बत ए बे पद श्राश्चर्यवाचक .) काली के काली नामे जे अधिष्टायक देवी, ते तरसा के शीघ्र-मां के हुँ जे ते प्रत्ये अवतात के रक्षण करो. ते काली देवी केवी ? तोके-नगदा-नग के० पर्वत, तेउने दाके विदारण करनारी, अने अमानगदा-अमान के सामर्थ्य प्रमाणरहित एवी बे: गदाके गदानामक आयुध जेनुं एवी, अने महोरा जिराजितरसा-महके तेज-ते नी जे राजि के० श्रेणी, तेणे करीने राजित के० शोनावेली ने, रसा के० पृथ्वी जेणे एवी, अने घनघनकाली-धन के निविड एवो जे घन के० मेघ, तेना सर खी काली के कमवर्ण, अने कनदूनसत्रासत्रा-जन के धनादिके रहित, दून के० शत्रुए पीडित, धने सत्रास के कुःखे सहित एवा पुरुषोने त्रा के रक्ष ण करनारी एवी. ॥ ॥ इति सुमतिजिनस्तुति संपूर्णा ॥२०॥ अवतरणः- हवे पद्मप्रनजिननी स्तुति वसंत तिलकावृत्ते करीने कहेजे. पादध्यादलितपद्ममृःप्रमोद, मुन्मुस्तामरस दामलतांतपात्री ॥ पाद्मप्रनीप्रविदधातुसतां वितीर्ण, मुन्मुस्तामरसदामलतांतपात्री ॥१॥ व्याख्या-पाद्मप्रनी के० पद्मप्रननामे जे जिननाथ, तेनी पादयी-पादके चरण-तेनी क्ष्यो के युग्म, ते प्रमोदं के अत्यंत हर्षने, प्रविदधातु के उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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