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शोननकृतजिनस्तुति. मदमदनरहितनरहितसुमते सुमतेनकनकतारेतारे॥ दम
दमपालयपालयदरादरातिदतितपातःपातः ॥१॥ व्याख्या-मदके० आवमद अने मदनके कामदेव-ए-ए रहितके विरहित एटले आठ कर्म अने कंदर्प--ए जेणे त्याग कस्खांडे, एवा हे मदमदनरहित!-अने पु रुपनुं ले हित जेनाथी, एवा हे नरहित ! अने सुमतेनके हे सुसिक्षांत स्वामिन् ! अने कनकके सुवर्ण तेना सरखा तारके० मनोहर एवा, हे कनकतार! अने इतके नष्ट थयाने, अरिके शत्रु जेनाथी, एवाहे इतारे! अने अप के बोड्याने प्रालय के० ग्रह जेणे, एवा हे थपालय! अने अरातितिक्षपातः-घराति के शत्रु, तेना थी जे क्षतिके० उपमर्द-तेज जाणे जयंकरपणामाटे पाके० रात्री, तेनाथी हे पातःके० हे रदक, हे सुमतेके हे सुमतिनामक जगवंत! तु दमदंके० उपशमने थापनारा जे पुरुष, तेने दरास्के ० इह लोकादिक सातजयथी, पालयके परदणकर.
विधुताराविधुतारासदासदानाजिनाजिताघाताऽघाः॥त नतापातनतापादितमादितमानवनवविनवाविनवाः॥॥ व्याख्या-विधुताराः-विधुत के नष्ट कस्या के आरं के शत्रुना समूह जेणे, अथवा विधुत के० दूर का बे अर के० संसारचक्रने विषे चमण जेणे, एवा थ ने विधुतारा:-विधु के चंमा तेना सरखा तार के० दैदीप्यमान बने सदानाः के दीदासमयनेविषे दानेयुक्त एवा थने जिताघाताघाः-जित के जीत्युं ने श्राघात के घातवर्जित एवं अघ के पाप जेणे, एवा धने अपातनुतापाः-अप के नोकली गयो , अतनु के मोहोटो, ताप के संताप जेनाथी, एवा अने थाहितमानवनवविनवाः-श्राहित के अत्यंत पूर्ण कर्यु ले मानवके० मान वतुं नव के नवीन एवं विनव के ऐश्वर्य जेणे एवा, अने विनवाः के० नष्ट थ यो ले संसार जेनो, एवा हे जिनाः के हे जिन! तमे सदा के निरंतर हितं के अमारी अनीष्ट सिधिने तनुत के विस्तार करो. ॥ २ ॥
मतिमतिजिनराजिनरादितेहितेरुचितरुचितमोदेऽमोदे ॥
मतमतनूननूनंस्मराऽस्मराधीरधीरसुमतःसुमतः ॥ ३ ॥ व्याख्या-नथी स्मरके कामदेवे करीने अधीरके अस्थिर एवीधीके बुद्धिजेनीएवा हे असमराधीरधी नव्य प्राणी, तुं असुमतके जेने प्राण ले एवा सर्व प्राणीमात्र
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