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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. हवे कुमतिने यागली गाथामां उत्तर देवे. सत्तर सदस्स जोया जई नंचा ॥ चारण तीर्ग चाले ॥ समवायंगे प्रगट पाठ ए ॥ शुं कुमति म घालेरे ? ॥ जि॥ तु ॥ २२ ॥ ५६ अर्थः- सत्तर सहस्स जोयण के० सत्तर हजार योजन, जई उंचाके० उंचा ज ईने, चारण ती चाले के० ते चारणमुनि ती जाए बे. एम ए रीते श्रीसम वायांगसूत्रमां प्रगट पाठ बे तो, धुं कुमति चमघाजेके ० हेकुमति, कुत्सित मतिना धणी, जोलालोकने खोटी खोटी वातो कही गुं चम घाले बे ? संशयमां गुंपाडेले ? जे तुं कले तेम कहेवा मात्र होय तो समवायांगसूत्रमां एवो पाठ केम कहे ? इ तिनावः यथा ॥ लवणेणं समुद्दे सत्तरजोयण सहस्साई सवग्गेणं पन्नत्ता इमीसे रयणप्पना पुढवीए बहुसमरमणिकान नूमिनागाउँ साइरेगाई सत्तर जोयएएस हस्ताइ उम्ढं उप्पइत्ता त पठाचारणाएं तिरियगई ॥ इति समवायांगे ॥ एनो अर्थ :- लवणसमुड् सत्तर जोयण सहस्सा के० सत्तर हजार जोजन, सव के० सर्व थने कह्यो बे. एकहजार मो, सोल हजारनी उपर शिखा. एवं १७००० इमी से रयणप्पनाए पुढवी एके० ए रत्नप्रनाष्टथ्वी की बहुसमरमणिका उ भूमिनागाउँ के० घणी सरखी एटले बराबर रमणीक नूमिनागथकी, एटले मेरुनी धरती की, साइरेगाइ सत्तरजोयणसहस्साई नढं उप्पइत्ता के० सत्त रहजार जोजन जाफेरा ऊर्ध्व जईने पचा के० पढी चारणाएं तिरियगई के० चारणमुनिनी ती गति प्रवर्ते ते माटे जगवतीसूत्रनो पाठ करवारूप बे; पण कहेवारूप नथी. इति नाव इति द्वाविंशतिम गाथायें ॥ २२ ॥ वे एलावामां चेश्याएं वंदे कयुं; ते उपर कुमति, चैत्यशब्दनो अर्थ ते ज्ञान कहेबे, तेह आशंका लावीने उत्तर वालवा गाथा कहे बे. चैत्यशब्दनो ज्ञान अरथ ते ॥ कहो करवो कुण देते ॥ ज्ञान एक ने चैत्य घणां ॥ नूले जड संकेतेरे ॥ जिणातु ॥ २३ ॥ अर्थः- चैत्य शब्दनो जे ज्ञान अर्थ करोबो, ते शा हेतुए करवो? पाधरो अर्थ चैत्यके ० जिननुं घर अथवा जिनप्रतिमा. यतः ॥ चैत्यं जिनौकस्तद्विबं चैत्यो जिन सनातरुः ॥ " इत्यनेकार्थसंग्रहे” एवो अर्थ मूकीने चैत्यके ० ज्ञान एवो अर्थ शामाटे करवो पडेबे ? इतिनाव. ज्ञान एक ने चैत्य घणांबे के०ज्ञानतो एक बे, घने चैत्य घणांबे; तेमाटे नूले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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